चेतना की शिखर यात्रा भाग-२
राष्ट की आजादी के बाद एक बहुत बड़ा वर्ग तो उसका आनन्द लेने में
लग गया किन्तु एक महामानव ऐसा था जिसने भारत के सांस्कृतिक आध्यात्मिक
उत्कर्ष हेतु अपना सब कुछ नियोजित कर देने का संकल्प लिया। यह महानायक थे
श्रीराम शर्मा आचार्य। उनने धर्म को विज्ञान सम्मत बनाकर उसे पुष्ट आधार
देने का प्रयास किया। साथ ही युग के नवनिर्माण की योजना बनाकर अगणित देव
मानव को उसमें नियोजित कर दिया। चेतना की शिखर यात्रा का यह दूसरा भाग
आचार्य श्री 1947 से 1971 तक की मथुरा से चली पर देश भर में फैली संघर्ष
यात्रा पर केन्द्रित है।हिमालय अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र है। समस्त
ऋषिगण यहीं से विश्वसुधा की व्यवस्था का सूक्ष्म जगत् से नियंत्रण करते
हैं। इसी हिमालय को स्थूल रूप में जब देखते हैं, तो यह बहुरंगी-बहुआयामी
दिखायी पड़ता है। उसमें भी हिमालय का ह्रदय-उत्तराखण्ड देवतात्मा-देवात्मा
हिमालय है। हिमालय की तरह उद्दाम, विराट्-बहुआयामी जीवन रहा है, हमारे
कथानायक श्रीराम शर्मा आचार्य का, जो बाद में पं. वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ
कहलाये, लाखों ह्रदय के सम्राट बन गए। तभी तक अप्रकाशित कई अविज्ञात विवरण
लिये उनकी जीवन यात्रा उज्जवल भविष्य को देखने जन्मी इक्कीसवीं सदी की
पीढ़ी को-इसी आस से जी रही मानवजाति को समर्पित है।
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