Sunday, 31 July 2016

स्वस्थ रहना है तो ये खाइए!


Preface

हमारे जीवन का आधार जिन बातों पर है, उनमें आहार का स्थान प्रमुख है ।। वैसे हम वायु के बिना पाँच मिनट भी नहीं जी सकते; जल के बिना भी दो- चार दिन तक जीवन धारण कर सकना कठिन हो जाता है, तो भी इनकी प्राप्ति में विशेष प्रयत्न की आवश्यकता न होने से उनके महत्त्व की तरफ हमारा ध्यान प्राय: नहीं जाता ।। पर आहार की स्थिति इससे भिन्न है ।। यदि यह कहें कि अनेक मनुष्यों का जीवनोद्देश्य केवल आहार प्राप्त करना ही होता है और उनकी समस्त गतिविधियाँ केवल भोजन की व्यवस्था पर ही केंद्रित रहती हैं, तो इसमें कुछ भी गलती नहीं ।। सामान्य मनुष्य के लिए संसार में सबसे प्रथम और सबसे बड़ी आवश्यकता आहार की ही जान पड़ती है और महान से महान व्यक्ति को भी उसकी तरफ कुछ ध्यान देना ही पड़ता है ।। इस प्रकार आहार समस्या से हमारा संबंध बड़ा घनिष्ठ है ।। पर ऐसे महत्त्वपूर्ण विषय में भी सर्वसाधारण की जानकारी अत्यंत कम है ।। लोग अपनी रुचि का भोजन पा जाने से संतुष्ट हो जाते हैं अथवा परिस्थितिवश जो कुछ खाद्य पदार्थ मिल जाए उसी से काम चलाने का प्रयत्न करते हैं ।। पर वह भोजन हमारे लिए वास्तव में कितना अनुकूल और उपयोगी है? उससे जीवन- तत्त्वों की कहाँ तक उपलब्धि हो सकती है? हमारे देह और मन के विकास के लिए वह कितना लाभदायक है ? 

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Saturday, 30 July 2016

चेतना की शिखर यात्रा भाग-२

Preface

राष्ट की आजादी के बाद एक बहुत बड़ा वर्ग तो उसका आनन्द लेने में लग गया किन्तु एक महामानव ऐसा था जिसने भारत के सांस्कृतिक आध्यात्मिक उत्कर्ष हेतु अपना सब कुछ नियोजित कर देने का संकल्प लिया। यह महानायक थे श्रीराम शर्मा आचार्य। उनने धर्म को विज्ञान सम्मत बनाकर उसे पुष्ट आधार देने का प्रयास किया। साथ ही युग के नवनिर्माण की योजना बनाकर अगणित देव मानव को उसमें नियोजित कर दिया। चेतना की शिखर यात्रा का यह दूसरा भाग आचार्य श्री 1947 से 1971 तक की मथुरा से चली पर देश भर में फैली संघर्ष यात्रा पर केन्द्रित है।हिमालय अध्यात्म चेतना का ध्रुव केन्द्र है। समस्त ऋषिगण यहीं से विश्वसुधा की व्यवस्था का सूक्ष्म जगत् से नियंत्रण करते हैं। इसी हिमालय को स्थूल रूप में जब देखते हैं, तो यह बहुरंगी-बहुआयामी दिखायी पड़ता है। उसमें भी हिमालय का ह्रदय-उत्तराखण्ड देवतात्मा-देवात्मा हिमालय है। हिमालय की तरह उद्दाम, विराट्-बहुआयामी जीवन रहा है, हमारे कथानायक श्रीराम शर्मा आचार्य का, जो बाद में पं. वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ कहलाये, लाखों ह्रदय के सम्राट बन गए। तभी तक अप्रकाशित कई अविज्ञात विवरण लिये उनकी जीवन यात्रा उज्जवल भविष्य को देखने जन्मी इक्कीसवीं सदी की पीढ़ी को-इसी आस से जी रही मानवजाति को समर्पित है।

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मित्रभाव बढाने की कला

Preface

मनुष्य सामाजिक प्राणी है । उसने इतना अधिक बौद्धिक एवं भौतिक विकास किया है, इसका कारण उसकी सामाजिकता ही है । साथ-साथ प्रेम पूर्वक रहने से आपस में सहयोग करने की भावना उत्पन्न होती है एवं मनुष्य अकेला के वल अपने बल-बूते पर कुछ अधिक उन्नति नहीं कर सकता, दूसरों का सहयोग मिलने से शक्ति की आश्चर्यजनक अभिवृद्धि होती है, जिसके सहारे उन्नति साधन बहुत ही प्रशस्त हो जाते हैं । मैत्री से मनुष्यों का बल बढ़ता है । आगे बढ़ने का, ऊँचेउठने का, क्षेत्र विस्तृत हो जाता है । आपत्तियों और आशंकाओं का मैत्री के द्वारा आसानी से निराकरण किया जा सकता है । आंतरिक उद्वेगों का समाधान करने में संधि-मित्रता से बढ़कर और कोई दवानहीं है । आत्मा का स्वाभाविक गुण प्रेम है, प्रेम को परमेश्वर कहा जाता है । प्रेम के बिना जीवन में सरसता नहीं आती । यह संभव है जहाँ सुदृढ़ मैत्री हो । स्वास्थ्य, धन और विद्या के समान मैत्री भी आवश्यक है । परंतु दुःख की बात है कि बहुत से मनुष्य न तो मैत्री का महत्व समझते है और न उसके जमाने, मजबूत करने एवं स्थायी रखने के नियम जानते है । उन्हें जीवन भर में एक भी सच्चा मित्र नही मिलता । यह पुस्तक इसी उद्देश्य को लेकर लिखी गई है कि लोग मैत्री के महत्त्व को समझें, उसे सुदृढ़ बनायें तथा स्थाई रखने की कला को जानें और मित्रता से प्राप्त होने वाले लाभों के द्वारा अपने को सुसंपन्न बनाएँ । हमारा विश्वास है कि इस पुस्तक से जनता को लाभ होगा ।

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बाल संस्कारशाला मार्गदर्शिका

Preface

पुस्तिका में विभिन्न धर्म- सम्प्रदायों में श्रद्धा रखने वाले छात्र- छात्राओं का विशेष ध्यान रखते हुए प्रार्थना आदि में तथा प्रेरक प्रसंगों आदि में किन बातों पर ध्यान दिया जाय, आदि टिप्पणियाँ देने का प्रयास किया गया है। जैसे- प्रार्थना के बाद अपने इष्ट का ध्यान, उनसे ही सद्बुद्घि माँगने के लिए गायत्री जप, अन्य मंत्र या नाम जप करें। विभिन्न सम्प्रदायों के श्रेष्ठ पुरुषों के प्रसंग चुने जाएँ। बच्चों से भी उनके जीवन एवं आदर्शों के बारे में पूछा जा सकता है, उन पर विधेयात्मक समीक्षा करें, आदि। विभिन्न स्कूलों में जाने वाले बच्चों को गणित, विज्ञान, अंग्रेजी जैसे विषयों में कोचिंग देने, होमवर्क में सहयोग करने, योग- व्यायाम सिखाने जैसे आकर्षणों के माध्यम से एकत्रित किया जा सकता है। सप्ताह में एक बार इस पुस्तिका के आधार पर कक्षा चलाई जा सकती है। प्रति दिन के क्रम में प्रारंभ में प्रार्थना, अंत में शांतिपाठ जैसे संक्षिप्त प्रसंग जोड़े जा सकते हैं। पढ़ी- लिखी बहिनें, सृजन कुशल भाई, रिटायर्ड परिजन इस पुण्य प्रयोजन में लग जाएँ तो प्रत्येक मोहल्ले में ‘बाल संस्कार शालाओं’ का क्रम चल सकता है। विद्यालय के ‘संस्कृति मंडलों’ में भी यह प्रयोग बखूबी किया जा सकता है। हमें विश्वास है कि भावनाशील परिजन लोक मंगल, आत्मनिर्माण एवं राष्ट्र निर्माण का पथ प्रशस्त करने वाले इस पुण्य कार्य में तत्परता पूर्वक जुट पड़ेंगे।

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प्राण शक्ति एक दिव्य विभूति-१७

Preface

प्राण शक्ति को एक प्रकार की सजीव शक्ति कहा जा सकता है जो समस्त संसार में वायु, आकाश, गर्मी एवं ईथर,-प्लाज्मा की तरह समायी हुई है। यह तत्व जिस प्राणी में जितना अधिक होता है। वह उतना ही स्फूर्तिवान, तेजस्वी, साहसी दिखाई पड़ता है। शरीर में संव्यास इसी तत्त्व को जीवनीशक्ति अथवा ‘ओजस’ कहते हैं और मन में व्यक्त होने पर ही तत्त्व प्रतिभा ‘तेजस्’ कहलाता है। अपनी शक्ति क्षरण के द्वारा बंद कर लेने के कारण शारीरिक एवं मानसिक ब्रह्मचर्य साधने वाले साधकों को मनस्वी एवं तेजस्वी इसी कारण कहा जाता है। यह प्राणशक्ति ही है जो कहीं बहिरंग के सौंदर्य में, कहीं वाणी की मृदुलता व प्रखरता में, कहीं प्रतिभा के रूप में, कहीं कला-कौशल व कहीं भक्ति भाव के रूप में देखी जाती है। वस्तुतः प्राणशक्ति एक बहुमूल्य विभूति है। यदि इसे संरक्षित करने का मर्म समझा जा सके तो स्वयं को ऋद्धि-सिद्धि संपन्न-अतीन्द्रिय सामर्थ्यों का स्वामी बनाया जा सकता है।

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वर्तमान चुनौतियाँ युवावर्ग

Preface

हमारे युवाओं में कभी भी प्रतिभा क्षमता की कमी नहीं रही है । आज भी उनके समक्ष अपार संभावनाएँ हैं । कुछ भी असंभव नहीं है । समस्या केवल यही है कि उन्हें अनेकानेक विकट एवं विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है । समाज में अनेक केकड़ा प्रवृतिके लोग उनकी टांग खीच कर नीचे गिराने हर समय तत्पर रहते हैं । यदि वे अपने मानव जीवन के उद्देश्य को भलीभाँति पहचान कर उचित पुरुषार्थ करेंगे तो वे अवश्यही इस काजल की कोठरी से बेदाग बाहर निकलने में सफलहो जाएंगे । इस पुस्तक के द्वारा युवावर्ग को यही संदेश देने का प्रयास किया गया है । थोडी़ सी समझदारी उनके जीवनको सफलता की स्वर्णिम आभा से आलोकित कर देगी । इस प्रकाश को अधिक से अधिक युवाओं तक अवश्य पहुँचाएँ ।


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Be Saved From Mental Tension

This booklet is a bouquet of spiritual thoughts.

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