Thursday, 8 September 2016

आकृति देखकर मनुष्य की पहचान


Preface

चेहरा मनुष्य के भीतरी भागों का दर्पण है । मन में जैसे भाव होते है, उन्हें कुछ अत्यन्त सिद्ध हस्त लोगों को छोड़कर कोई आसानी से नहीं छिपा सकता । मनोगत भाव आमतौर से चेहरे पर अंकित हो जाते हैं । मुखाकृति को देखकर मन की भीतरी बातों का बहुत कुछ पता लगालिया जाता है । परन्तु जब कोई भाव अधिक समय तक मन में मजबूती के साथ बैठ जाता है तो उसका प्रभाव आकृति पर स्थाई रूप से पड़ता है और अंगों की बनावट वैसी ही हो जाती है । स्वभाव के परिवर्तन के साथ-साथ चेहरे की बनावट में कितने ही सूक्ष्म अन्तर आ जाते है । 

जब कोई मनोवृत्ति बहुत पुरानी एवं अभ्यस्त होकर मनुष्य के अन्तःकरण में संस्कार रूप से जम जाती है तो वह कई जन्मों तक जीवका पीछा करती है । इस स्वभाव संस्कार के अनुसार माता के गर्भ मेंउस जीव आकृति का निर्माण होता है । बालक के पैदा होने पर जानकार लोग जान लेते है कि किन स्वभावों और संस्कारों की इसके अन्तःकरणपर छाया है और उन संस्कारों के कारण उसे जीवन में किस प्रकार की परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ेगा । 

आकृति विज्ञान का यही आधार है । प्राचीन काल में इस विद्या की सहायता से बालकों के संस्कारों को समझ कर उनकी प्रवृत्तियो को सन्मार्ग पर लगाने का प्रयत्न किया जाता था । अब भी इसका यही उपयोग होना चाहिए । इसके चिह्न बुरे हैं इसलिए यह अभागा है इससे घृणा करे, इसके चिह्न अच्छे हैं, यह भाग्यवान है, इसे अधिक आदर दें, यह भावना इसविद्या का दुरूपयोग है ।

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