Monday 8 May 2017

स्वामी रामतीर्थ

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जिस समय स्वामी रामतीर्थ जापान होकर अमेरिका पहुँचे तो जहाज पर आपको बिना किसी तरह के सामान के देखकर एक अमेरिकन सज्जन को बड़ा आश्चर्य हुआ । तपस्या की ज्योति और प्रेम की भावना से परिपूर्ण ऐसा चेहरा उसने पहले कभी नहीं देखा था। वह उनके पास आकर पूछने लगा-
प्रश्न-आपका सामान है?
उत्तर-मेरे पास इतना ही सामान है - जो मेरें शरीर पर है ।
प्रश्न-तो फिर आप अपना रुपया-पैसा कहीं रखते है ?
उत्तर मेरे लिए रुपया-पैंसो अपने पास रखना मना है ।
प्रश्न-आप कहाँ जायेंगे? क्या आप अमेरिका में किसी को जानते है? आपका कोई मित्र नहीं है ?
उत्तर-हाँ, मैं आपको जानता हूँ आप ही मेरे मित्र हैं ।
स्वामी जी के इस आंतरिक आत्म-भाव को देखकर वह अमेरिकन सज्जन, जिसका नाम मि० हिल्लर था, चकित रह गया । वह उसी क्षण उनका भक्त बन गया और उन्हें अपने साथ घर ले गया । स्वामीजी को उसने दो वर्ष तक अपने यहाँ रखा ।
अमेरिका में ही एक महिला स्वामी राम से मिलने आई । वह बड़ी दुःखी थी, क्योंकि उसका बच्चा मर गया था । वह चाहती थी राम करके सुखी होने का उपाय बता दें ।
स्वामी जी ने कहा-
राम खुशी बेचता है, पर तुम्हें उसकी कीमत देनी होगी ।
स्त्री-आप जो कुछ माँगे, मैं देने को तैयार हूँ ।
स्वामी जी-सुख के राज्य का सिक्का दूसरा ही है और तुम्हें राम के देश का ही सिक्का देना पड़ेगा ।

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