जो कुछ हम देखते, जानते या अनुभव करते हैं-क्या वह सत्य है ? इस प्रश्न का मोटा उत्तर हॉ में दिया जा सकता है, क्योंकि जो कुछ सामने है, उसके असत्य होने का कोई कारण नहीं । चूँकि हमें अपने पर, अपनी इंद्रियों और अनुभूतियों परविश्वास होता है इसलिए वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति के बारे में जो समझते हैं, उसे भी सत्य ही मानते हैं । इतने पर भी जब हम गहराई में उतरते है तो प्रतीत होता है कि इंद्रियों के आधार पर जो निष्कर्ष निकाले जाते है; वे बहुत अधूरे, अपूर्ण और लगभग असत्यही होते हैं । शास्त्रों और मनीषियों ने इसलिए प्रत्यक्ष इंद्रियों द्वारा अनुभव किये हुए को ही सत्य न मानने तथा तत्त्वदृष्टि विकसित करने के लिए कहा है । यदि सीधे-सीधे जो देखा जाता व अनुभव किया जाता है, उसे ही सत्य मान लिया जाए तो कई बार बड़ी दुःस्थितिबन जाती है । इस संबंध में मृगमरीचिका का उदाहरण बहुत पुराना है । रेगिस्तानी इलाके या ऊसर क्षेत्र में जमीन का नमक उभर कर ऊपर आ जाता है । रात की चाँदनी में वह पानी से भरे तालाब जैसा लगता है । प्यासा मृग अपनी तृषा बुझाने के लिये वहाँ पहुँचता है और अपनी आँखों के भ्रम में पछताता हुआ निराश वापस लौटता है । इंद्रधनुष दीखता तो है, पर उसे पकड़ने के लिये लाख प्रयत्न करने पर भी कुछ हाथ लगने वाला नहीं है । जल बिंदुओं पर सूर्य की किरणों की चमक ही ऑखों पर एक विशेष प्रकार का प्रभाव डालती है और हमें इंद्रधनुष दिखाई पड़ता है, जिसका भौतिक अस्तित्व कहीं नहीं होता ।Buy Online@
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