Thursday, 24 March 2016

शिक्षा ही नहीं विद्या भी

नव सृजन योजना महाकाल की योजना है। वह पूरी तो होनी ही है। उस परिवर्तन का आधार बनेगा चरित्रनिष्ठ, भाव-संवेदना युक्त व्यक्तित्वों से। ऐसे व्यक्तित्व बनाना विद्या का काम है, मात्र शिक्षा उसके लिए पर्याप्त नहीं। मात्र शिक्षा-साक्षरता तो मनुष्य को निपट स्वार्थी भी बना सकती है। उसमें विद्या का समावेश अनिवार्य है। अस्तु, नवयुग के अनुरूप मन:स्थितियाँ एवं परिस्थितियाँ उत्पन्न करने के लिए बड़ी संख्या में ऐसे प्राध्यापकों की आवश्यकता अनुभव हो रही है, जिनकी शिक्षा भले ही सामान्य हो, पर वे अपने चुंबकीय व्यक्तित्व और चरित्र से निकटवर्ती क्षेत्र को अपनी विशिष्टताओं से भर देने की विद्या के धनी हों। 

नाविक के लिए आवश्यक नहीं कि उसके पास स्नातकोत्तर परीक्षा पास करने का प्रमाण पत्र हो ही। मजबूत कलाई और चौड़े सीने वाला हिम्मत के सहारे उफनती नदी की छाती पर दनदनाता हुआ दौड़ता रहता है। अपने को, अपने निकट वालों को-नाव पर बैठी हुई सवारियों को इस पार से उस पार पहुँचाने में उसे देर नहीं लगती, वरन् हिम्मत और सफलता को देखते हुए गर्व-गौरव अनुभव करता है।

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