कुल मिलाकर रास्ता सिर्फ एक बचता है। योग को वैज्ञानिक पैमाने पर खरा सिद्ध किया जाए। विज्ञान के प्रयोगों के आधार पर जो प्राचीन यौगिक पद्धतियाँ उपयोगिता सिद्ध करती है, उन्हे सहर्ष स्वीकार किया जाए,शेष को आज की जरुरत के अनुसार ढाला जाए।इससे जहाँ देश के आम आदमी को शारीरिक-मानसिक और आध्यात्मिक रुप से सशक्त कर स्वस्थ और समर्थ राष्ट की नींव रखी जा सकेगी, वहीं दुनिया के सामने भी अपने पारम्परिक ज्ञान की महत्ता सिद्ध की जा सकेगी। संभवत:सुनहरा कल इसी रास्ते से सामने आयेगा।
मानवीय मन के विशेषज्ञ कार्ल रोजर्स दीर्घकालीन अनुसंधान प्रकिया का निष्कर्ष बताते हुए कहते है कि स्वास्थ्य संकट के प्रश्न कंटक को निकालने के लिए मानवीय प्रकृति की संरचना व उसकी क्रियाविधि का समग्र ज्ञान चाहिए। तभी उसमें आयी विकृति की पहचान व निदान सम्भव है।यह समस्त विज्ञान योग शास्त्रों में पहले से ही उपलब्ध है।
मानवीय मन के विशेषज्ञ कार्ल रोजर्स दीर्घकालीन अनुसंधान प्रकिया का निष्कर्ष बताते हुए कहते है कि स्वास्थ्य संकट के प्रश्न कंटक को निकालने के लिए मानवीय प्रकृति की संरचना व उसकी क्रियाविधि का समग्र ज्ञान चाहिए। तभी उसमें आयी विकृति की पहचान व निदान सम्भव है।यह समस्त विज्ञान योग शास्त्रों में पहले से ही उपलब्ध है।
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