समाज - सुधार और जनसेवा मे संलग्न जानकी मैया
शहरों में रहने वाले और विशेषतया वे व्यक्ति जिनके घरों में नल
लगे हैं, इस बात को जल्दी नहीं समझ सकते कि पानी के अभाव से भी करोड़ों
लोगों को कितना कष्ट सहन करना पड़ता है । अमेरिका आदि आधुनिक देशों में तो
जिन स्थानों में पानी की कमी होती है, सरकार समुद्र के पानी को मीठा बनाकर
बाहर से पानी लाकर नागरिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है । पर भारत के
लाखों गाँवों में जहाँ कुएँ बहुत कम और गहरे हैं, अथवा गर्मी में जिनका
पानी सूख जाता है, वहाँ के निवासियों को थोड़े से पानी के लिए भी कितना
परिश्रम और प्रयत्न करना पड़ता है, इसको भुक्त-भोगी ही जानते हैं । जहाँ
मुनुष्यों को भी पीने के लिए जल-कष्ट सहन करना पड़ता है, वहाँ गाय, बैल,
घोड़ा आदि पशुओं की क्या दशा होती होगी, इसकी कल्पना से भी मन दुःख से भर
जाता है ।
ऐसा ही दृश्य जब "जानकी मैया" ने महापुरुष विनोबा के साथ बिहार के गाँवों
की पद-यात्रा करते समय देखा, तो उसका हृदय करुणा से ओत-प्रोत हो गया । वह
विचार करने लगी कि कैसे खेद की बात है कि ये गरीब लोग पूरा पानी भी नहीं
पाते, अथवा दो-दो, चार-चार मील से लाकर अपनी प्यास बुझाते हैं जबकि नगरों
में लाखों व्यक्तियों के यहाँ चाय, शर्बत, कोको-कोला की ही भरमार होती रहती
है । उन्होंने यह बात विनोबा जी के सम्मुख प्रकट की । उन्होंने भी इसकी
गंभीरता स्वीकार की और वे इस संबंध में किसी उपाय पर विचार करने लगे ।
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