Preface
पूर्णत: बुद्धिहीन मनुष्य शायद कोई भी न होगा । जिसे हम मूर्ख या बुद्धिहीन कहते हैं, उसमें बुद्धि का बिलकुल अभाव नहीं होता । एक अध्यापक की दृष्टि में किसान मूर्ख है, क्योंकि वह साहित्य के विषय में कुछ नहीं जानता, किंतु परीक्षा करने परमालूम होगा कि किसान को खेती के संबंध में पर्याप्त होशियारी, सूझ और योग्यता है । एक वकील की दृष्टि में अध्यापक मूर्ख है, क्योंकि कानून की पेचीदगियों के बारे में कुछ नहीं जानता । इसी प्रकार एक डाक्टर की दृष्टि में वकील मूर्ख ठहरेगा, क्योंकि वह यह भी नहीं जानता कि जुकाम हो जाने पर उसकी क्या चिकित्सा करनी चाहिए ? सेठ जी की दृष्टि में पंडित भिख मंगे हैं, तो महात्मा जी की दृष्टि में सेठ जी चौकीदार हैं । इन सब बातों परविचार करते हुए ऐसा मनुष्य मिलना कठिन है, जो सर्वथा निर्बुद्धि कहा जा सके । दो मनुष्य यदि आपस में एक समान विषय काज्ञान रखते हैं, तो वे एक-दूसरे की दृष्टि में बुद्धिमान् हैं । यदि दोनों की योग्यताएँ अलग-अलग विषयों में हैं, तो वे प्राय:एक्-दूसरे को बुद्धिमान् न कहेंगे ।यहाँ दो प्रश्न उपस्थित होते है -
( १) क्या बुद्धि का विकास बचपन में ही संभव है ?
(२) क्या सभी मनुष्य बुद्धिमान् हैं ? पहले प्रश्न के उत्तर में कहना चाहिए कि आरंभिक काल की शिक्षा अवश्य ही महत्वपूर्ण एवं सरल है । इनमें बीस वर्ष की आयु तकजो संस्कार जम जाते हैं, वे अगले चार-पाँच वर्षों में पुष्ट होकर जीवन भर बने रहते हैं ।
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