Preface
पिता एक ऐसा शब्द है, जिसका उच्चारण करते ही निश्चिन्ततापूर्ण संरक्षण की अनुभूति होती है। पूज्य आचार्यश्री एक वृहद् परिवार के पिता थे। एक ऐसा परिवार, जिसके सदस्यों को उन्होंने एक खास मकसद के लिए दुनिया के कोने-कोने से तलाशा व तराशा था। वह उनके संरक्षण और विकास के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध थे। वह बहुत दूर बैठकर भी अपने एक-एक बच्चे का ध्यान रखते थे। उनका हर शिष्य आज भी सदैव उनके स्नेहिल संरक्षण में होने की स्पष्ट अनुभूति करता है और अपने शिष्यों के साथ उनके अलग-अलग रूपों में होने के प्रमाण हमें आये दिन मिलते रहते हैं। दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से संतप्त इस संसार में पूज्यवर ने अपने मानसपुत्रों को कई बार आसन्न संकटों से बचाया। गायत्री परिवार का इतिहास ऐसी अनेकानेक घटनाओं से भरा पड़ा है।आचार्यवर द्वारा स्थापित गायत्री परिवार के सहस्रों कार्यकर्ता, लाखों-लाख उनके पुत्र व पुत्रियाँ ऐसी कई घटनाओं के स्वयं साक्षी हैं। इन अद्भुत् घटनाओं की गिनती करना, इन्हें किसी पुस्तक में बाँध पाना असंभव-सा काम है। फिर भी, कदम-कदम पर प्राप्त होते रहे युगऋषि के अद्भुत् अनुदानों को लेकर जन्मशताब्दी वर्ष में रोम-रोम से कृतज्ञता व्यक्त करते हुए श्रद्धासुमन के रूप में प्रस्तुत हैं- पूज्यवर के वरदपुत्रों द्वारा अभिव्यक्त कुछ अविस्मरणीय अनुभूतियाँ।
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