कलकत्ता नगर में महामारी (प्लेग) का प्रकोप था । प्रतिदिन सैंकड़ों व्यक्तियों पर उसका आक्रमण होता था । हालत बिगड़ती देखकर सरकार ने स्थिति का नियंत्रण करने के लिए कड़े नियम बनाए । पर जब नगर निवासी अनुशासन की कमी से उनका पालन करने में ढीलढाल करने लगे तो शहर के भीतर और चारों तरफ फौज तैनात कर दी गई । इससे नगरवासियों में बड़ा आतंक फैल गया और उपद्रव हो जाने की आशंका होने लगी ।
स्वामी विवेकानंद उस समय विदेशों में हिन्दू धर्म की ध्वजा फहराकर और भारतवर्ष का दौरा करके कलकत्ता आए ही थे । वे अपने देशी-विदेशी सहकारियों के साथ बेलूड़ में रामकृष्ण परमहंस मठ की स्थापना की योजना में संलग्न थे । लोगों पर इस घोर विपत्ति को आया देखकर वे सब काम छोड़कर कर्मक्षेत्र में कूद पड़े और बीमारों की चिकित्सा तथा सफाई को एक बड़ी योजना बना डाली ।
गुरु - भाई ने पूछा-स्वामीजी ? इतनी बड़ी योजना के लिए फंड कहाँ से आएगा ?
स्वामीजी ने तुरंत उत्तर दिया- आवश्यकता पड़ेगी तो इस मठ के लिए जो जमीन खरीदी है उसे बेच डालेंगे । सच्चा मठ तो सेवा कार्य ही है । हमें तो सदैव संन्यासियों के नियमानुसार भिक्षा माँगकर खाने तथा पेड़ के नीचे निवास करने को तैयार रहना चाहिए ।
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