Preface
गायत्री-शक्ति और गायत्री-विद्या को भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान दिया गया है। उसे वेदमाता-भारतीय धर्म और संस्कृति की जननी उद्गम-गंगोत्री कहा गया है। इस चौबीस अक्षर के छोटे से मंत्र के तीन चरण है। ॐ एवं तीन व्याहृतियों वाला चौथा चरण है। इन चारों चरणों का व्याख्यान चार वेदों में हुआ है। वेद भारतीय तत्त्वज्ञान और धर्म अध्यात्म के मूल है। गायत्री उपासना की भी इतनी ही व्यापक एवं विस्तृत परिधि है।गायत्री माता के आलंकारिक चित्रों, प्रतिमाओं में एक मुख-दो भुजाओं का चित्रण है। कमंडलु और पुस्तक हाथ में है। इसका तात्पर्य इस महाशक्ति को मानवता की उत्कृष्ट आध्यात्मिकता की प्रतिमा बनाकर उसे मानवी आराध्या के रूप में प्रस्तुत करना है। इसकी उपासना के दो आधार है-ज्ञान और कर्म। पुस्तक से ज्ञान का और कंमडलु जल से कर्म का उद्बोधन कराया गया है। यही वेदमाता है। उसी को विश्व-माता की संज्ञा दी गई है। सर्वजनीन और सर्वप्रथम इसी उपास्य को मान्यता दी गई है।
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