Thursday, 26 May 2016

चेतना की प्रचंड़ क्षमता एक दर्शन

Preface

शरीर रचना से लेकर मन:संस्थान और अंतःकरण की संवेदनाओं तक सर्वत्र असाधारण ही दृष्टिगोचर होता है, यह सोद्देश्य होना चाहिए अन्यथा एक ही घटक पर कलाकार का इतना श्रम और कौशल नियोजित होने की क्या आवश्यकता थी ? 

पौधे और मनुष्य के बीच पाये जाने वाले अंतर पर दृष्टिपात करने से दोनों के बीच हर क्षेत्र में मौलिक अंतर दृष्टिगत होता है । विशिष्टता मानवी काया के रोम-रोम में संव्याप्त है । आत्मिक गरिमा पर विचार न भी किया जाय, तो भी मात्र काय संरचना और उसकी क्षमता पर विचार करें तो भी इस क्षेत्र में कम अद्भुत नहीं है ।

Buy Online @ 
http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=830




No comments:

Post a Comment