Preface
शौर्य और धर्मनिष्ठा के प्रतीक वीर शिवाजी
शास्त्रों का यह वचन कि बच्चे के संस्कारों का निर्माण गर्भ काल से ही होने लगता है सर्वथा सत्य एवं माननीय है ।। साथ ही इतना और जोड़ा जा सकता है कि वातावरण एवं परिस्थितियों का प्रभाव भी उस पर कम नहीं पड़ता ।। गर्भकाल में माता- पिता के और विशेष तौर से माता के आचरण विचार का प्रभाव, बच्चे के संस्कारों पर अपनी गहरी छाप छोड़ता है ।। जन्मोपरांत वह उनके आचरण तथा विचार और चारों तरफ की परिस्थितियाँ एवं वातावरण से तद्नुसार तत्वों को ग्रहण करता है और करता रहता है ।। बच्चे मे जिस आचरण, आचार- विचार और मनोभावों का बनाना अभीष्ट हो माता- पिता को चाहिये कि वे स्वयं वैसे ही बनें और तदनुकूल वातावरण बच्चे के आस- पास उपस्थित रखने का प्रयत्न करें ।।
कौन कह सकता है कि छत्रपति महाराज शिवा जी के निर्माण में उनके माता- पिता तथा तत्कालीन उनके आस- पास का वातावरण और परिस्थितियों का सहयोग न रहा हो ।। उनकी माता एक वीर स्वभाव तथा धर्मपरायण महिला थी ।। दृढ़ता, धैर्य और साहस उनके जीवन की अमूल्य निधि थी ।। उनके पिता एक साहसी सैनिक, सेनानायक और नीतिज्ञ राज्य संचालक थे ।। उपस्थित के प्रति प्रत्युत्पत्र बुद्धि और समयानुकूल सूझ- बूझ के साथ- साथ उन्होंने विवेक बल पर अपनी दृष्टि और भविष्य- भावना को एक अच्छी सीमा तक विकसित तथा प्रखर बना रखा था ।। इन्हीं गुणों के कारण ही तो वे एक साधारण कृषक से राजा और सामान्य मनुष्य से शाही दरबारों में ऊँचे मनसबदार बन सके थे ।।
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