Friday, 3 June 2016

वीर सावरकर

Preface

 

स्वातंत्र्य यज्ञ के हुतात्मा- वीर सावरकर

रत्नगर्भा भारत माता ने समय- समय पर जिन विभूतियों को उत्पन्न किया है, स्वनाम धन्य नर- शार्दूल सावरकर का स्थान उनमें बहुत ऊँचा है ।। सांसारिक अभ्युदय के लिए जिन साधनों, जिन योग्यताओं और जिन सुविधाओं की आवश्यकताएँ हैं, उन सबके होते हुए भी सावरकर जी ने अपनी जवानी में अपने उज्ज्वल भविष्य, सुख- समृद्धि संपन्न पारिवारिक जीवन, इष्ट मित्रों, बंधु- बांधवों की सुनहरी आशाओं पर पानी फेर भारत माता की एक- एक आह पर अपनी अनेक अतृप्त चाहों को बलिदान कर दिया था।

महाराष्ट्र के चिरपावन ब्राह्मणों का वंश भारत ने प्रसिद्ध है। विगत दो शताब्दियों से इस वंश में निरंतर ऐसे महापुरुष जन्म लेते रहे हैं, जिन्होंने अपनी प्रिय भारत- भूमि की स्वतंत्रता के लिए विदेशियों से जूझते हुए अपने प्राण तक देना गौरव का चिह्न समझा है। १८५७ के क्रांति- युद्ध के नेता नाना साहब पेशवा, ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह करने वाले वासुदेव बलवंत, फड़के, पूना के अंग्रेज अधिकारियों को मारकर प्राण- दंड पाने वाले चापेकर बंधु और रानाडे तथा लोकमान्य तिलक भी इसी वंश मैं पैदा हुए थे। 


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