Tuesday, 28 June 2016

अपरिमित सम्भावना मानवीय व्यक्तित्व-२१

Preface

मनुष्य पूज्यवर के शब्दों में एक भटका हुआ देवता है, जिसे यदि सच्ची राह दिखाई जा सके, उसके देवत्त्व को उभारा जा सके जो आज प्रसुप्त पड़ा हुआ है, तो उसके व्यक्तित्त्व रूपी समुच्चय में इतनी शक्ति भरी पड़ी है कि वह जो चाहे वह कर सकता है, असंभव से भी असंभव दीख पड़ने वाले पुरुषार्थ संपन्न कर सकता है । विडम्बना यही है कि मनुष्य इस प्रसुप्त पड़े भाण्डागार को जिसमें अपरिमित संभावनाएँ हैं, पहचान नहीं पाता एवं विषम परिस्थितियों में पड़ ज्यों त्यों कर जिन्दगी गुजारता देखा जाता है । पाश्चात्य वैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य मूलत: पशु है व वहाँ से उठकर बंदर की योनि से मनुष्य बना है । पूज्यवर वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की कसौटी पर कसे गए आध्यात्मिक विकासवाद की दुहाई देते हुए कहते हैं यह नितान्त एक कल्पना है । मनुष्य मूलत: देवता है, पथ से भटक गया है, यह योनि उसे इसलिए दी है कि वह देवत्त्व की दिशा में अग्रगमन कर सके । यदि यह संभव हो सका तो वह देवत्त्व को अर्जित कर स्वयं को क्षमता संपन्न विभूतिवान बना सकता है । 

मानवी व्यक्तित्व को एक कल्पवृक्ष बताते हुए उससे मनोवांछित उपलब्धियाँ पाने की बात कहते हुए गुरुदेव कहते हैं कि यदि मनुष्य चाहे तो अपने को सर्वशक्तिमान बना सकता है । विचारों की शक्ति बड़ी प्रचण्ड है । आत्मसत्ता को जिन विचारों से सम्प्रेषित- अनुप्राणित किया गया है उसी आधार पर इसका बहिरंग का ढाँचा विनिर्मित होगा । अपूर्णता से पूर्णता की ओर चलते चलना व सतत विधेयात्मक चिन्तन बनाए रखना ही मनुष्य के हित में है । 
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