Monday, 23 January 2017

स्वस्थ रहने की कला

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=91मनुष्य की काय संरचना ऐसी है, जिसे यदि तोड़ा-मरोड़ा न जाए, सहज गति से चलने दिया जाए तो वह लंबे समय तक बिना लड़खड़ाए कारगर बनी रह सकती है ।आरोग्य स्वाभाविक है और रोग प्रयत्न पूर्वक आमंत्रित । सृष्टि के सभी प्राणी अपनी सहज आयु का उपभोग करते हैं । मरण तो सभी का निश्चित है, पर वह जीर्णता के चरम बिंदु पर पहुँचनेके उपरांत ही होता है । मात्र दुर्घटनाएँ ही कभी-कभी उसमें व्यवधान उत्पन्न करती हैं । रुग्णता का अस्तित्व उन प्राणियोंमें दृष्टिगोचर नहीं होता, जो प्रकृति की प्रेरणा अपनाकर सहज सरल जीवन जीते हैं । मनुष्य ही इसका अपवाद है । इसी जीवधारी को आए दिन बीमारियों का सामना करना पड़ताहै । बेमौत मरते भी वही देखा जाता है । दुर्बलता, रुग्णता और असामयिक मृत्यु कोई दैवी विपत्तिनहीं है । मनुष्य द्वारा अपनाई गई रहन-सहन संबंधी प्रतिक्रिया मात्र है । आहार-विहार में संयम बरता जा सके और मस्तिष्कको अनावश्यक उत्तेजनाओं से बचाए रखा जा सके, तो लंबी अवधि तक सुखपूर्वक निरोगी जीवन जिया जा सकता है ।आरोग्य की उपलब्धि के लिए बहुमूल्य टॉनिकों या औषध-रसायनों को खोजने की तनिक भी आवश्यकता नहींहै । जो उपलब्ध है उसे बरबाद न करने की सावधानी भरबरती जाए, तो न बीमार पड़ना पड़े, न दुर्बल रहना पड़े औरन असमय बेमौत मरने की आवश्यकता पड़े । चिकित्सकों का द्वार खटखटाने की अपेक्षा आरोग्यार्थी यदि रहन-सहन में सम्मिलित कुचेष्टाओं को निरस्त कर सकें, तो यह उपाय उनकी मनोकामना सहज ही पूरी कर सकता है । 

 

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