जीवन रोगों के भार और मार से बुरी तरह टूट गया है ।। जब तन के
साथ मन भी रोगी हो गया हो, तो इन दोनों के योगफल के रूप में जीवन का यह
बुरा हाल भला क्यों न होगा ? ऐसा नहीं है कि चिकित्सा की कोशिशें नहीं हो
रही ।। चिकित्सा तंत्र का विस्तार भी बहुत है और चिकित्सकों की भीड़ भी भारी
है ।। पर समझ सही नहीं है ।। जो तन को समझते हैं, वे मन के दर्द को
दरकिनार करते हैं ।। और जो मन की बात सुनते हैं, उन्हें तन की पीड़ा समझ
नहीं आती ।। चिकित्सकों के इसी द्वन्द्व के कारण तन और मन को जोड़ने वाली
प्राणों की डोर कमजोर पड़ गयी है ।।
पीड़ा बढ़ती जा रही है, पर कारगर दवा नहीं जुट रही ।। जो दवा ढूँढी जाती है,
वही नया दर्द बढ़ा देती है ।। प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों में से प्राय: हर
एक का यही हाल है ।। यही वजह है कि चिकित्सा की वैकल्पिक विधियों की ओर सभी
का ध्यान गया है ।। लेकिन एक बात जिसे चिकित्सा विशेषज्ञों को समझना चाहिए
उसे नहीं समझा गया ।। समझदारों की यही नासमझी सारी आफतो- मुसीबतों की जड़
है ।। यह नासमझी की बात सिर्फ इतनी है कि जब तक जिन्दगी को सही तरह से नहीं
समझा जाता, तब तक उसकी सम्पूर्ण चिकित्सा भी नहीं की जा सकती ।।
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