रोग - औषधि आहार- विहार एवं उपवास
प्राकृतिक आहार- विहार के नियमों का पालन ठीक प्रकार किया जाए तो
शरीर को निरोग एवं स्वस्थ बनाए रखा जा सकता है ।। आरोग्य को डगमगाने वाली
छोटी- मोटी विकृतियों आती भी हैं तो भी शरीर के विभिन्न तंत्र उनके
निष्कासन में समर्थ होते हैं ।। कभी- कभी तो वातावरण में हुए हेर- फेर से
शरीर संस्थान में भी शोधन एवं बदली हुई परिस्थितियों से सामंजस्य का क्रम
चलता है ।। ऐसे अवसरों पर उभरी हर छोटी- मोटी बीमारी के लिए एलोपैथिक दवाओं
की शरण में जाना स्वास्थ्य के लिए अहितकर होता है ।। प्रकट हुए रोग दवाओं
के सेवन से दब तो जाते हैं किंतु दूसरे नए प्रकार के रोग प्रतिक्रियास्वरूप
परिलक्षित होने लगते हैं ।।
न्यूजीलैंड के एक प्रसिद्ध प्राकृतिक चिकित्सक उलरिक विलियम ने लिखा है-
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और कुछ नहीं, केवल नई बीमारी को पुरानी में बदल
देने का, एक को दूसरी में परिणत कर देने का गोरखधंधा है ।। नासमझी के कारण
भोले लोग इस जाल में फँस जाते हैं और क्षणिक लाभ का चमत्कार पाने के लालच
में चिरस्थायी बीमारियों के शिकार बन जाते हैं ।।
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