निरोग जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र-३९
नीरोग जीवन एक ऐसी विभूति है, जो हर किसी को अभीष्ट है। कौन
नहीं चाहता कि उसे चिकित्सालयों-चिकित्सकों का दरवाजा बार-बार न खटखटाना
पड़े । उन्हीं का, औषधियों का मोहताज होकर न जीना पड़े, पर कितने ऐसे हैं, जो
सब कुछ जानते हुए भी रोगमुक्त नहीं रह पाते ? यह इस कारण कि आपकी जीवनशैली
ही त्रुटिपूर्ण है । मनुष्य क्या खाए कैसे खाए; यह उसी को निर्णय करना है ।
आहार में क्या हो यह हमारे ऋषिगण निर्धारित कर गए हैं । वे एक ऐसी
व्यवस्था बना गए हैं, जिसका अनुपालन करने पर व्यक्ति को कभी कोई रोग सता
नहीं सकता । आहार के साथ विहार के संबंध में भी हमारी संस्कृति स्पष्ट
चिंतन देती है, इसके बावजूद भी व्यक्ति का रहन-सहन, गड़बड़ाता चला जा रहा है ।
परमपूज्य गुरुदेव ने इन सब पर स्पष्ट संकेत करते हुए प्रत्येक के लिए
जीवनदर्शक कुछ सूत्र दिए हैं, जिनका मनन, अनुशीलन करने पर निश्चित ही
स्वस्थ, नीरोग और शतायु बना जा सकता है ।
परमपूज्य गुरुदेव ने व्यावहारिक अध्यात्म के ऐसे पहलुओं पर सदा से ही जोर
दिया जिनकी सामान्यतया मनुष्य उपेक्षा करता आया है और लोग अध्यात्म को
जप-चमत्कार, ऋद्धि-सिद्धियों से जोड़ते हैं, किंतु पूज्यवर ने स्पष्ट लिखा
है कि जिसने जीवन जीना सही अर्थों में सीख लिया, उसने सब कुछ प्राप्त कर
लिया । जीवन जीने की कला का पहला ककहरा ही सही आहार है । इस संबंध में
अनेकानेक भ्रांतियाँ हैं कि क्या खाने योग्य है, क्या नहीं ? ऐसी अनेकों
भ्रांतियां यथा-नमक जरूरी है, पौष्टिकता संवर्द्धन हेतु वसाप्रधान भोजन
होना चाहिए शाकाहार से नहीं, मांसाहार से स्वास्थ्य बनता है, को पूज्यवर ने
विज्ञानसम्मत तर्क प्रस्तुत करते हुए नकारा है ।
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