डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
राजेन्द्र बाबू (सन् १८८४ से १९६३) का जन्म बिहार और जीरादेयी
गाँव में हुआ था। उनके पिता श्री महादेव सहाय एक सामान्य जमींदार थे, जो
अपनी सेवा और दयालुता के लिए आस-पास बहुत प्रसिद्ध थे। उनको आयुर्वेद तथा
यूनानी चिकित्सा का सामान्य ज्ञान था और वे बहुत तरह की दवाइयाँ बनाकर
लोगों को मुफ्त बाँटा करते थे। उस समय सब जगह सरकारी अस्पताल और औषधालय तो
थे नहीं, इसलिए बाबू महादेव सहाय के स्थान को ही अस्पताल मानकर रोगियों
कीभीड़ लगी रहती थी। उनकी पत्नी भी बड़ी दयावान और सहानुभूति रखने वाली थीं।
वह किसी के कष्ट, पीड़ा को नहीं देख सकती थीं। उनके पास लोग सदैव किसी न
किसी प्रकार की सहायता माँगने आते ही रहते थे।
राजेन्द्र बाबू और मजरुल हक दोनों उन महापुरुषों में से थे, जो जातीय द्वेष
की क्षुद्र भावना से बहुत ऊपर रहते थे। भारत के गत ५० वर्षों के इतिहास को
देखते हुए हम जानते हैं कि मुसलमानों में मजहबी पक्षपात दूसरी जातियों की
अपेक्षा अधिक होता है तो भी व्यक्तिगत रूप से सज्जन पुरुष उनमें भी पाए
जाते हैं। इस सम्बन्ध में हमको अपना दृष्टिकोण उदार और संतुलित ही रखना
चाहिए।
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