Friday, 4 November 2016

कर्मयोगी केशवानन्द

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साधु- संन्यासियों के लिए आदर्श - कर्मयोगी केशवानंद

भारतवर्ष की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता यहाँ के साधु- संन्यासी भी हैं ।। इसमें संदेह नहीं कि यह परंपरा अति प्राचीन काल से चली आई है, पर विभिन्न युगों में इसका इतना अधिक रूपांतर हुआ है कि आज के साधु- सन्यासियों को देखकर प्राचीन काल के साधुओं का किसी भी प्रकार अनुमान नहीं लगाया जा सकता ।। हमको भारतीय- साहित्य में वशिष्ठ, विश्वामित्र, व्यास, गौतम, कपिल, कणाद आदि ऋषियों का जो विवरण मिलता है उससे यह कभी प्रकट नहीं होता कि वे आजकल के साधुओं की तरह बिना कोई समाजोपयोगी कार्य किये दूसरों के परिश्रम की कमाई से पेट भरने वाले जीव थे ।। उनमें से शायद ही कोई गृहत्यागी था ।। वे सच्चे अर्थों में समाज और धर्म के संचालक थे और यदि दान ग्रहण भी करते थे, तो उसका उपयोग अधिकांश में विद्या- प्रचार समाजोत्रति की विविध प्रकार की प्रवृत्तियों में ही करते थे ।। यदि आजकल के अस्सी- नब्बे लाख सा नामधारी व्यक्ति उस परंपरा का कुछ अंशों में भी पालन करते ती आज भारतीय समाज और जाति की दशा वर्तमान से बहुत भिन्न और संतोषजनक हो सकती ।। पर इस समय हम साधुओं की जो गतिविधियाँ देख रहे हैं, उसका परिणाम विपरीत ही देखने में आ रहा है उससे समाज की किसी प्रकार की सेवा या उन्नति होने के बजाय, उसके पतन में ही सहायता मिलती दिखाई पड़ रही है ।।

 

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