Sunday, 6 November 2016

महात्मा गाँधी

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=841गाँधीजी का वास्तविक जीवन संघर्ष सन् १८९३ से आरम्भ होता है, जब डेढ़ वर्ष तक बंबई और राजकोट में बैरिस्टरी के धंधे में सफलता प्राप्त न होने पर वे एक भारतीय व्यापारी के मुकदमे की पैरवी करने दक्षिण अफ्रीका गए। वहाँ अदालती काम तो उनको थोड़ा ही करना पड़ा, पर भारतवासी होने के कारण कदम-कदम पर उनको अपमानजनक व्यवहार सहन करना पड़ा, जिससे उनकी आँखें खुल गईं। वहाँ के गोरे सभी भारतवासियों को कुली-मजदूर मानते थे और इसलिए गाँधीजी को "कुली बैरिस्टर" के नाम से पुकारते थे।. . . कुछ मित्रों के आग्रह से उन्होंने वहाँ रहकर इस अन्याय के प्रतिरोध का निश्चय किया।

वर्तमान युग में जबकि संसार के लोग आधिभौतिक (वैज्ञानिक) चमत्कारों पर ही विशेष जोर दे रहे हैं, भारतवर्ष का यह वीर और तपस्वी नेता अपने सात्विक गुणों, स्वार्थ-त्याग और आत्म-शक्ति के कारण ही देश और विदेशों में अत्यधिक सम्मान प्राप्त कर रहा है। जिस समय पाश्चात्य सभ्य राष्ट्र अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए युद्ध के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग जानते ही नहीं, उस समय महात्मा गाँधी अपने राष्ट्रीय आन्दोलन को "अहिंसात्मक असहयोग" के पथ पर चला रहे हैं। वे कहते हैं कि, भारत को रक्तपात से ही स्वराज्य मिल सकता है, तो हम दूसरों के बजाय अपना ही रक्त क्यॊं न बहावें ? हिंसा का आश्रय लेना तो स्पष्टत: आत्मा की दुर्बलता का प्रमाण है। वीर पुरुष तो वही है – जो अपने शत्रु पर भी दया करता है।"

योरोपियन प्रतिनिधियों ने बड़े विनीत भाव से कहा – "आप से भेंट होने को हम अपना बड़ा सौभाग्य समझते हैं। आप जब बोलते हैं तो जान पड़ता है कि वे शब्द "बाइबिल" में से ही चले आ रहे हैं। 

 

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