विश्ववंद्य सन्त वसुधा जिन्हें पाकर धन्य हुई
भक्तिमार्ग के प्रवर्तक प्रसिद्ध धार्मिक संत स्वामी रामानंद
काशी से रामेश्वरम की यात्रा पर निकले थे ।। मार्ग में एक गाँव पड़ता था -
आलंदी ।। स्वामी रामानंद ने वहाँ अपना डेरा डाला और कुछ दिनों तक रुक कर
जन- साधारण को ज्ञान, कर्म और भक्ति की त्रिवेणी में मज्जित कराते रहे ।।
स्वामी रामानंद एक मारुति मंदिर में ठहरे हुए थे, उसी मंदिर में गाँव की एक
युवती स्त्री भी प्रतिदिन दर्शन और पूजन के लिए आया करती थी ।। संयोग से
एक दिन स्वामीजी का उससे सामना हो गया ।। स्त्री ने रामानंद जी को प्रणाम
किया तो बरबस उनके मुँह से निकल गया पपुत्रवती भव । आशीर्वाद सुनकर युवती
पहले तो हँसी फिर एकाएक चुप हो गई ।। स्वामी जी को कुछ समझ में नहीं आया
उन्होंने पूछा… देवी तुम हँसी क्यों हो ? फिर एकाएक चुप क्यों हो गई ? हैं
उस युवती ने कहा - मेरी हँसी और फिर चुप्पी का कारण यह है कि आप जैसे
महात्मा का आशीर्वाद बिल्कुल निष्फल जाएगा । क्यों बेटी तुम्हारी कोई संतान
नहीं है क्या - माथे पर सिंदूर और हाथों में चूडियाँ देखकर स्वामी जी ने
उसके सधवा होने का अनुमान लगाते हुए कहा ।।
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