जन जागृति के प्रणेता युग मनीषी
कामना मानव मन की एक सहज स्वाभाविक वृत्ति है ।। यही वह वृत्ति
है जो मनुष्य को निरंतर कर्मशील बनाए रखती है।। यों लौकिक कामनाएँ तो हर
व्यक्ति करता है पर पारमार्थिक पारलौकिक या बहुजन हिताय बहुजनसुखाय के लिए
अपनी योग्यता, प्रतिभा व शक्ति को नियोजित करते हुए एक महान ध्येय को पा
लेने की दैवी अभिलाषाएँ भी कइयों के मन में उठा करती हैं ।। कुछ व्यक्ति उन
भावनाओं, अभिलाषाओं को पूर्ण नहीं पाते और कुछ पूर्ण कर लेते हैं ।। इसके
पीछे उन लोगों की व्यावहारिक सूझ- बूझ व ध्येयनिष्ठा की प्रखरता जुड़ी रहती
है ।। कोई सामान्य जन अपनी सीमित सामर्थ्य में कितना बड़ा काम कर सकता है-
इसके अनुपम उदाहरण आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी हैं ।। पारिवारिक और
सामाजिक दायित्वों को पूरी तरह निभाते हुए भी आचार्य वर ने राष्ट्रभाषा
हिंदी के उन्नयन में जो योगदान दिया उसे सभी जानते हैं ।। उनका काल ही
हिंदी साहित्य के इतिहास में द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है ।।
हिंदी के वरद् पुत्रों में प्रतिभाशाली तो कई हुए हैं ।। उन प्रतिभाओं का
सदुपयोग करने वाले भी अनेक हुए हैं ।। किंतु जहाँ प्रश्न आता है किसी ध्येय
को लेकर श्रम की उपलब्धि- दैवी संपदा के सहारे जिन लोगों ने अपने आप में
प्रतिभा का सृजन, संवर्द्धन किया, ऐसे विरले ही मिलेंगे ।। उन्हीं में से
एक महावीर प्रसाद द्विवेदी भी हैं ।।
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