साहित्यिक ऋषि - रवींद्र
इंग्लैंड में जाड़े का मौसम कितना कठिन और कष्टप्रद होता है इसे भुक्तभोगी
जानते हैं ? मोटे- मोटे ऊनी कपड़े लाद लेने पर भी शीत से पीछा नहीं छूटता ।।
ऐसे ही एक दिन में महाकवि रवींद्र लंदन की एक सड़क पर जा रहे थे ।। चलते-
चलते उन्होंने देखा कि मार्ग के पास ही एक व्यक्ति खड़ा है ।। उसके फटे
जूतों में से उसके पैर दिखाई पड़ रहे थे, क्योंकि उसके पास मोजे नहीं थे ।।
कपड़ों की कमी से सीना भी कुछ खुला था ।। इंग्लैंड में भीख माँगना कानूनन
माना जाता है, इसलिए उसने कुछ कहा तो नहीं, पर एक क्षण लिए अर्थपूर्ण से
देखता रहा ।। रवि बाबू का हृदय उसकी दीनता पर द्रवित गया और उसके हाथ पर एक
गिन्नी (स्वर्ण- मुद्रा) रखकर आगे चल दिये ।। एक मिनट बाद ही वह दौड़ता हुआ
इनके पास आया और कहने लगा- महोदय, आपने भूल से मुझे एक गिन्नी दे दी है ।
यह कहकर वह उसे वापस करने लगा ।। जब रवि बाबू ने आश्वासन दिया तब वह उसे
लेकर गया ।।
इस छोटी- सी घटना से जहाँ महाकवि की दयार्द्र प्रकृति का पता लगता है वहाँ
यह भी विदित होता है कि इंग्लैंड जैसे "रुपया परस्त" समझे जाने वाले देश के
निवासी हम संसार को नश्वर कहने वाले लोगों की अपेक्षा कितने अधिक ईमानदार
और सत्य- व्यवहार करने वाले हैं ।। एक गरीब भिखारी की तो बात क्या, यहीं के
अधिकांश सफेदपोश बाबू और धनी व्यक्ति भी भूल से किसी से कुछ अधिक पा जाएँ
तो उसे चुपके से जेब के हवाले करते हैं ।। इतना ही क्यों हमने प्राय: सेठ-
साहूकारों को तरकारी मंडी में सौदा तुल जाने पर छोटी के बदले बड़ी चीज लेने
का प्रयत्न करते देखा है ।। भाव- ताव और लेन- देन में झूठे व्यवहार को यहीं
अधिकांश व्यक्ति एक बुराई के बदले चतुरता समझते हैं ।। इतने पर भी हम अपने
को ससार भर में सबसे अधिक धार्मिक और आदर्शवादी मानते हैं ।। इस दंभ का
कुछ ठिकाना नहीं है ।।
Buy online:
No comments:
Post a Comment