मानवता को विश्वबंधुत्व का मंत्र देने वाले सृजन शिल्पी
अहिंसा के पुजारी - अफ्रीका के गांधी जोमो केन्याता
स्कॉटलैंड मिशन के एक बुजुर्ग पादरी ने सड़कों पर भटकते और धूल की खाक
छानते फिर रहे एक दसवर्षीय बालक को देखा तो उनके मानवीय हृदय में दयार्द्र
भाव जाग्रत हो उठा और उन्होंने उसका नाम, ग्राम, पिता, निवास आदि सभी का
परिचय पूछा ।। दसवर्षीय बालक के उत्तरों से जो पता चला उससे के पादरी की
आत्मा द्रवित हो उठी ।। नाम जो भी कोई पुकारे, गाँव का पता नहीं, पिता का
मुँह भी नहीं देख पाया और जहाँ शाम हो जाए वहीं निवास- इस स्थिति का जिस
भोलेपन से परिचय दिया और अंतर की पीड़ा अपनी द्रवीभूत कर देने वाली शक्ति के
साथ जिस तरह उभर आई, उसे देखते हुए पादरी से यह कहते ही बना- "तुम हमारे
साथ रहोगे ।"
खाने को मिलेगा - एक ही शर्त थी उस अफ्रीकी बालक की और इसका सकारात्मक उत्तर देते हुए पादरी ने इतना भर कहा- भर पेट ।।
"तो मैं जरूर आपके साथ रहूँगा और जो भी काम बताएँगे करूँगा ।"
इसी शताब्दी के दूसरे दशक ही घटना है ।। केन्या में धर्मप्रचार और मानव
सेवा का कार्य कर रहे एक पादरी तथा एक फटेहाल गरीब और भूखे बालक के बीच हुआ
संवाद है यह।। इस संवाद का परिणाम यह हुआ कि पादरी ने उसे अपने फोर्ट हाल
मिशन में भरती कर लिया ।। वहाँ पर उसे बढ़ईगीरी का काम सिखाया जाता,
निर्धारित घंटों में शिक्षा दी जाती और खाने- पीने का कोई अभाव तो था ही
नहीं ।।
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