संत तुकाराम
संसार में सभी मनुष्यों का लक्ष्य धन, संतान और यश बताया गया है।
इन्हीं को विद्वानों ने वित्तैषणा, पुत्रैषणा और लोकैषणा के नाम से पुकारा
है। इन तीनों से विरक्त व्यक्ति ढूँढ़ने से भी कहीं नहीं मिल सकता। संभव है
किसी मनुष्य को धन की लालसा कम हो, पर उसे भी परिवार और नामवरी की प्रबल
आकांक्षा हो सकती है। इसी प्रकार अन्य व्यक्ति ऐसे मिल सकते हैं कि जिनको
धन के मुकाबले में संतान या यश की अधिक चिन्ता न हो। पर इन तीनों इच्छाओं
से मुक्त हो जाने वाला व्यक्ति किसी देश अथवा काल में बहुत ही कम मिल सकता
है।
इस प्रकार विरक्त अवस्था में रहकर उन्होंने भूख, प्यास, निद्रा, आलस्य को
जीत लिया। गीता के अनुसार "युक्ताहार विहार" होने से सब इन्द्रियाँ वश में आ
गयीं। समय-समय पर वे तीर्थ यात्रा को भी जाते थे, पर वे तीर्थ आस-पास के
ही होते थे। अपने पूर्वजों के नियमानुसार आषाढ़ और कार्तिक की पूर्णिमा को
पंढरपुर तो जाते ही थे। ज्ञानेश्वर की जन्म भूमि "आलदी" तथा एकनाथ का निवास
स्थान "पैठण" उनके गाँव से पास ही थे। फिर एक बार २३-२४ वर्ष की अवस्था
में उन्होंने समस्त भारत के तीर्थों की यात्रा करके भारतीय समाज की अवस्था
और तत्कालीन समस्यायों की जानकारी प्राप्त की। पर तीर्थों की दशा उस समय भी
बहुत त्रुटिपूर्ण हो गयी थी और सब जगह धर्म-जीवियों ने उनको पेट भरने का
साधन बना लिया था।
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