बुराइयों के अंधकार मे अच्छाइयो की किरणे
वृद्ध अध्यापक की वसीयत
एक वृद्ध रोगी मृत्यु- शय्या पर था ।। सभी परिजन दुःख से त्रस्त, मुँह पर
हवाइयाँ उड़ी हुई।। डॉक्टर परेशान था ।। उसने हर प्रकार की दवाइयाँ और
इंजेक्शन दिए थे, किंतु कोई लाभ न हुआ था ।। रह- रहकर रोगी आँखें खोलता,
विस्फारित नेत्रों से मित्रों और निकट संबंधियों को अपने चारों ओर खड़ा
देखता, पहचानने की कोशिश करता, पर कमजोरी के कारण नेत्र स्वयं मुँद जाते,
जैसे सायंकाल के मुरझाए पुष्प!
जो कुछकर सकते हों, इन्हें बचाने केलिए कीजिए! हम आपको अधिक से अधिक फीस देंगे! उसके संबंधियों ने अनुनय की ।।
चिंतित डॉक्टर ने रोगी का परीक्षण करते हुए कहा- "मैं सब दवाइयाँ और उपचार
करके देख चुका हूँ और भी कर रहा हूँ. .लेकिन रोगी बहुत बूढ़ा है.. जर्जर हो
चुका है, कई दिनों से ताकत की दवाइयों पर जीता रहा है.. .मनुष्य की आयु की
भी एक सीमा है...।"
फिर भी...फिर भी... रोते हुए संबंधी बोले -आप इनके लिए तो कुछ और प्रयत्न कीजिए।। प्राण बचाइए... जब तक साँस तब तक आस... ।
डॉक्टर फिर नया इंजेक्शन देने लगा ।।
सहसा रोगी ने अपने निर्बल हाथों से डॉक्टर का हाथ पकड़ लिया ।। धीमी सी कमजोर ध्वनि में उसने कुछ कहना चाहा ।।
Buy online:
No comments:
Post a Comment