Preface
मनन करने से जो त्राण करे, उसे मंत्र कहते हैं ।। मंत्रविद्या का विस्तार असीम है, उसमें अनेकानेक शब्दगुच्छक हैं ।। अनेक शब्दों में मंत्रों का विस्तार हुआ है ।। उनके जप तथा सिद्धिपरक अनेकानेक योगाभ्यास भी हैं, कर्मकांड भी, किंतु उन सबके मूल में एक ही ध्वनि आती है- वह है ओंकार ।। यही शब्दब्रह्म- नादब्रह्म की धुरी है ।। शब्दब्रह्म यदि मंत्र विज्ञान की पृष्ठभूमि बनाता है तो नादब्रह्म की साधना नादयोग का आधार बनती है ।। ओंकार के विराट ब्रह्मांड में गुंजन से ही सृष्टि की उत्पत्ति हुई है, यदि यह कहा जाए तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी ।। नाद या शब्द से सृष्टि की उत्पत्ति व ताप, प्रकाश, आदि शक्तियों का आविर्भाव उसके बाद होता चला गया ।। इस प्रकार सृष्टि का मूल- इस निखिल ब्रह्मांड में संव्याप्त ब्राह्मी चेतना की धुरी यदि कोई है तो वह शब्द का नाद ही है ।।परमपूज्य गुरुदेव ने इस अनूठे किंतु जटिल विषय पर जिस सरलता से प्रतिपादन प्रस्तुत किया है, वह देखकर उसे पढ़कर आश्चर्यचकित होकर रह जाना पड़ता है ।। समस्त योगाभ्यासों का मूल ही- यहाँ तक कि परमात्मा तक पहुँचने के मार्ग का द्वार ही शब्दब्रह्म- नादब्रह्म है ।। इसे समझ कर उसे कैसे आत्मसात् किया जाए कैसे अपने अंदर छिपे पड़े प्रसुप्त के जखीरे को जगाया जाए यह सारा मार्ग दर्शन वाड्मय के इस खंड में है ।।
शब्दब्रह्म- नादब्रह्म की विधा भारतीय अध्यात्म की एक महत्त्वपूर्ण धारा है ।। जहाँ शब्दब्रह्म में मंत्र- जप, नामोच्चारण, प्रार्थना, समूहिक साधना आदि की महत्ता है, वहाँ नादब्रह्म में नादयोग एवं संगीत की ।। यह तो मोटा वर्गीकरण हुआ ।।
इस खंड में शब्दब्रह्म की साधना व नादब्रह्म की साधना के जटिल पक्षों को खोला गया है एवं जन-जन के लिए उसे सुगम बनाने का प्रयास किया गया है ।
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