Preface
संवेदनशील- अनुकरणीय आयुबचपन सीखने की सबसे बड़ी अवधि है ।। उस अवधि में अचेतन इतना अधिक सचेतन होता है कि जो कुछ ग्रहण कर लेता है उसे आजीवन अपनाए रहता है ।। बच्चों की प्रत्यक्ष समझ तो कमजोर होती है पर उनकी सूक्ष्म ग्रहण- शक्ति इतनी अधिक होती है कि उसे आधारशिला कहा जाए तो कुछ अत्युक्ति न होगी ।।
दस वर्ष तक बालकपन माना गया है और इसके बाद के दस वर्ष तक का बालक बीस वर्ष की आयु तक का किशोर होता है ।। यही आयु है, जिसमें अभिभावकों की, संबंधी हितैषियों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है ।। बीस वर्ष में प्राय: मनुष्य समझदार हो जाता है, अपना भला- बुरा समझने लगता है और अपनी बुद्धि के सहारे अपने भले- बुरे का निर्णय कर सकता है ।। यों इस आयु में भी श्रेष्ठ- सज्जनों की संगति की आवश्यकता रहती है ।।
दस वर्ष तक के गुण, कर्म, स्वभाव का निर्माण अभिभावक और परिवार के लोग करते हैं ।। दस वर्ष तक बच्चा प्राय: माता- पिता और अभिभावकों के बीच रहता है ।। स्कूल पढ़ने जाता है तो वहाँ सभी अजनबी होते हैं ।। ज्यादातर समय उसे घर- परिवार में ही व्यतीत करना पड़ता है ।। उस समय में वह जो कुछ सीखता- समझता है, परिवार के लोग ही उसके वास्तविक शिक्षक होते हैं ।।
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