Preface
एषोऽग्निस्तपत्येष सूर्य एष-पर्जन्यो मघवानेष वायुः।एष पृथिवी रयिर्देवः सदसच्चामृतं चयत्।।
यह प्राण ही शरीर में अग्नि रूप धारण करके तपता हैं, यह सूर्य,मेघ,इंद्र,वायु,पृथ्वी तथा भूत समुदाय हैं, सत् असत् तथा अमृत स्वरूप ब्रह्म भी यही है।
क्या हम उतने ही हैं- जितना स्थूल शरीर
प्रथम महायुद्ध के समय डॉन और बॉब नामक दो अमेरिकी सैनिक युद्ध के मोर्चे पर एक साथ ही घायल हो गये ।। वे दोनों गहरे मित्र भी थे ।। डॉन तो तुरंत मर गया किन्तु बॉब उपचार से ठीक हो गया ।। पर स्वस्थ होने पर बॉब के स्वभाव में भारी परिवर्तन देखा गया ।। वह अपने मित्र डॉन जैसा व्यवहार करने लगा ।। स्वयं को डॉन कहता ।। युद्ध समाप्त होने पर वह घर के लिए रवाना हुआ किन्तु अपने घर न जाकर डॉन के घर जा पहुँचा ।। वहाँ डॉन के माता पिता से मिलकर उतना ही प्रसन्न हुआ जैसा डॉन होता था ।। आचरण और व्यवहार में डॉन से पूर्ण समानता होने पर भी बॉब का शरीर तो पूर्ववत् ही था ।। डॉन के माता- पिता ने बॉब को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया ।। इस पर बॉब रूपी डॉन को विशेष दुःख हुआ ।। उसने डॉन के माता पिता को अतीत से संबंधित ऐसी- ऐसी प्रामाणिक घटनाएँ बतायीं जो उन्हीं से संबंधित थी ।। उस पर उसको विश्वास हो गया कि रूप की भिन्नता होते हुए भी उसके सारे क्रियाकलाप डॉन जैसे है तथा डॉन की आत्मा बॉब की आत्मा प्रविष्ट हो गई है ।। यह घटना विज्ञान के लिए एक चुनौती जैसी है ।।
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