जिनके विवाह नहीं हुए हैं, उनके संस्कार को सुयोग्य व्यवस्थाप कों एवं पुरोहितों द्वारा अत्यन्त प्रभावोत्पादक बनाया जाना चाहिए । पर जिनके विवाह हो चुके हैं, उनके सम्बन्ध में हो गया सोहो गया कहकर छुटकारा नहीं पाया जा सकता । उनको वह लाभपुन: मिलना चाहिए जो औधे-सीधे ढंग से बेगार भुगताने की भगदड़ में उन्हें नहीं मिल पाया है । इसके लिए सबसे उत्तम सरल औरउपयोगी तरीका विवाह दिवसोत्सव मनाया जाना ही हो सकता है ।जिस दिन विवाह हुआ था, हर वर्ष उस दिन एक छोटा-सा उत्सवसमारोह मनाया जाय । मित्र-परिजन एकत्रित हों, विवाह का पूरा कर्मकाण्ड तो नहीं पर उनमें प्रयुक्त होने वाली कुछ क्रियायें फिरकी जायें और जो मोटे-मोटे संकल्प हैं वे पति-पत्नी द्वारा हर वर्ष किये जायें तथा विवाह के कर्तव्य उत्तरदायित्वों को नये सिरे से पुन:समझा, समझाया जाय ।
हर वर्ष इस प्रकार का व्रत धारण, प्रशिक्षण, संकल्प एवं धर्मानुष्ठान किया जाता रहे तो उससे दोनों को अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों को पालने, निबाहने की निश्चय ही अधिक प्रेरणा मिलेगी | भारतीय तत्व-वेत्ताओं ने विवाह संस्कार का महान् विधि-विधान इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए विनिर्मित किया था । उस समय बोले जाने वाले मंत्र, देवाह्वान, यज्ञ एवं अन्यान्य कर्मकाण्डों का एक वैज्ञानिक महत्व है । उनके कारण वर-वधू के अन्तःकरणों में एक विशेष प्रकार की आद्रता आती है और वे अनायास ही एक-दूसरे में धुलने लगते है |
हर वर्ष इस प्रकार का व्रत धारण, प्रशिक्षण, संकल्प एवं धर्मानुष्ठान किया जाता रहे तो उससे दोनों को अपने कर्तव्य एवं उत्तरदायित्वों को पालने, निबाहने की निश्चय ही अधिक प्रेरणा मिलेगी | भारतीय तत्व-वेत्ताओं ने विवाह संस्कार का महान् विधि-विधान इसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए विनिर्मित किया था । उस समय बोले जाने वाले मंत्र, देवाह्वान, यज्ञ एवं अन्यान्य कर्मकाण्डों का एक वैज्ञानिक महत्व है । उनके कारण वर-वधू के अन्तःकरणों में एक विशेष प्रकार की आद्रता आती है और वे अनायास ही एक-दूसरे में धुलने लगते है |
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