Sunday, 24 April 2016

गायत्री के जगमगाते हीरे

Preface

गायत्री-मंत्र के प्रारंभ में ऊँ लगाया जाता है । ऊँ परमात्मा का प्रधान नाम है । ईश्वर को अनेक नामों से पुकारा जाता है । एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति उस एक ही परमात्मा को ब्रह्मवेत्ता अनेक प्रकार से कहते हैं । विभिन्न भाषाओं और संप्रदायों में उसके अनेक नाम हैं । एक-एक भाषा में ईश्वर के पर्यायवाची अनेक नाम हैं फिर भी वह एक ही है । इन नामों में ऊँ को प्रधान इसलिए माना है कि प्रकृति की संचालक सूक्ष्म गतिविधियों को अपने योग-बल से देखने वाले ऋषियों ने समाधि लगाकर देखा है कि प्रकृति के अंतराल में प्रतिक्षण एक ध्वनि उत्पन्न होती है जो ऊँ शब्द से मिलती-जुलती है । सूक्ष्म प्रकृति इस ईश्वरीय नाम का प्रतिक्षण जप और उद्घोष करती है इसलिए अकृत्रिम, दैवी,स्वयं घोषित, ईश्वरीय नाम सर्वश्रेष्ठ कहा गया है । आस्तिकता का अर्थ है-सतोगुणी, दैवी, ईश्वरीय, पारमार्थिक भावनाओं को हृदयंगम करना । नास्तिकता का अर्थ है-तामसी, आसुरी, शैतानी, भोगवादी, स्वार्थपूर्ण वासनाओं में लिप्त रहना । यों तो ईश्वर भले-बुरे दोनों तत्त्वों में है पर जिस ईश्वर की हम पूजा करते हैं, भजते हैं ।

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