Preface
आस्तिकता मानव जीवन की एक अनिवार्य आवश्यकता है । बिना ईश्वर के मनुष्य इतनी लम्बी अपनी जीवन-यात्रा पूरी नहीं कर सकता । ईश्वर पर, उसके अनुशासन पर, उसके कण-कण में समाए अस्तित्व में विश्वास पर ही इस धरित्री का सारा क्रिया-कलाप टिका हुआ है । जिस दिन यह व्यापक परिमाण में उठ जाएगा एवं धरती स्वच्छन्द, भोगवादी विचारधारा पर, विश्वास रखने वाले नास्तिकों से भरी होगी, सृष्टि का अस्तित्त्व ही खतरे में पड जाएगा । परमपूज्य गुरुदेव पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी के साहित्य की मूल धुरी "आस्तिकवाद" रही है । विभिन्न तर्कों, प्रतिपादनो-दृष्टान्तों एवं प्रमाणों के माध्यम से जन-जन के मनों में आस्तिकवाद की प्रेरणा भरने का प्रयास किया है । वाड्मय के इस खण्ड में ईश्वर-विश्वास करने वाले के जीवन में प्रतिक्रिया-स्वरूप क्या-क्या परिवर्तन-फलितार्थ देखने को मिलते हैं, विस्तार से पाठक पढ़ सकते हैं ।आस्तिकता का अर्थ है- आत्मविश्वास, दृढ़ इच्छाशक्ति एवं मनोबल की प्रचुरता । जिसे अपने आप पर पूर्णत: विश्वास है, वही सच्चे अर्थो में आस्तिक है, यह परिभाषा पूरी तरह वेदान्त के अध्यात्म ब्रह्म, तत्त्वमसि की भावना को चरितार्थ करती पूरे खण्ड में देखी जा सकती है । आज तथाकथित प्रच्छन्न आस्तिकता मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करने के रूप में दिखाई देती है, परन्तु यह पूज्यवर की दृष्टि में विवेक की कसौटी पर कसने पर यह मात्र एक छलावा जान पड़ती है । जिसे ईश्वर पर विश्वास है, वह दिखावा नहीं करता । अपने आपको प्रगाढ़ आत्मविश्वास संपन्न बनाता है । यह एक ऐसी विभूति है जिसके माध्यम से अन्यान्य ऋद्धि-सिद्धियाँ स्वत: आ जाती हैं । ऐसा पूज्यवर का मत है ।
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