Tuesday, 5 April 2016

मन की तुष्टि आत्मा की दुर्गति

दो में से एक का चुनाव

अध्यात्मवाद को व्यावहारिक जीवन में धारण करने के लिए हमें अपने दैनिक जीवन में कुछ समय इस कार्य के लिए भी लगाने को तत्पर होना पड़ेगा । आमतौर से हमारे दिन-रात के २४ घंटे शरीर तथा उससे संबंधित भौतिक समस्याओं को सुलझाने तथा उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने में लगते हैं । कुछहा समय सोने, नने, मल-मूत्र त्यागने में लगता है, कुछ रोजी-रोटी कमाने में बीतता है, कुछ आराम, मनोरंजन, गपशप में, कुछ उलझनों को सुलझाने में लग जाता है । यह कार्य इतने अधिक और इतने उलझे हुए होते हैं कि २४ घंटे का समय भी इनके लिए कम पड़ता है । यदि यह घंटे २-४ की मात्रा में और भी बढ़ गए होते, एक दिन २४ घंटे की अपेक्षा २६ या २८ घंटे का होता तो भी कम ही सिद्ध होते । इंद्रियों की वासनाएँ तृप्त करने के समय बड़ी प्रिय लगती हैं, पर उस भोग के जो दूरवर्ती परिणाम होते हैं वे इतनी उलझनें पैदा करते हैं कि मनुष्य के लिए वह सब एक भारी बंधन बन जाता है ।

जिह्वा इंद्रिय विविधविधि स्वादिष्ट भोजन जल्दी-जल्दी अधिक मात्रा में खाने को लालायित रहती है । उसकी तृप्ति लोग करते भी हैं । पर इस असंयम के कारण जब पेट खराब होता है, रक्त दूषित बनता है, नाना प्रकार के रोग शारीरिक कष्ट ही नहीं, आर्थिक कठिनाई, कार्यों में असफलता आदि की अगणित समस्याएँ पैदा कर देती हैं ।

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