Wednesday, 6 April 2016

चिरयौवन एवं शाश्वत सौन्दर्य-42

मानवी स्वास्थ्य एवं आयुष्य का मूलभूत आधार है आध्यात्मिक जीवनक्रम अपनाते हुए अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं -चिरपुरातन आयुर्वेद की ‘‘स्वस्थवृत्त समुच्चय’’ जैसी धारणाओं को जीवन में उतारते हुए जीवनचर्या चलाना। आज व्यक्ति अकाल मृत्यु को प्राप्त होता है। आधुनिक विज्ञान की बदौलत जीवित भी है तो दवाओं के आश्रय पर व किसी तरह जीवन की गाड़ी खींच रहा है। समस्त प्रगति के आयामों को पार करने के बावजूद भी ऐसा क्यों है कि बीमार सतत बढ़ते ही चले जाते हैं, रुग्णालय भी आयामों को पार करने के बावजूद भी ऐसा क्यों है कि बीमार सतत बढ़ते ही चले जाते हैं, रुग्णालय भी बढ़ रहे हैं व चिकित्सक भी किन्तु स्वास्थ्य लौटता कहीं नहीं दिखाई देता। अन्दर से वह स्फूर्ति तेजस्विता विरलों के ही अन्दर देखी जाती है। बहुसंख्य व्यक्ति निस्तेज रह किसी तरह तमाम असंयमों के साथ -साथ जीवन जीते देखे जाते हैं। परमपूज्य गुरुदेव ने स्वास्थ्य सम्बन्धी इस खण्ड में नीरोग जीवन का, चिरयौवन का मूलभूत आधार बताने का प्रयास किया है।

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1 comment:

  1. सादर प्रणाम पूज्यवर

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