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प्राचीन काल का इतिहास हम खोजते हैं तो पाते हैं कि सभी ऋषियों-मुनिजनों, अवतारी सत्ताओं की उपासना का मूल आधार गायत्री ही रहा है । गायत्री साधना से सतोगुणी सिद्धियों व्यक्ति को मिलती हैं एवं उसका जीवन संवेदना-समर्थता-कुशलता-संपन्नता इन चतुर्दिक शक्तियों से ओतप्रोत हो जाता है । गायत्री त्रिगुणात्मक है । इसकी उपासना से जहाँ सतोगुण बढ़ता है, वहीं कल्याणकारी उपयोगी रजोगुण की भी अभिवृद्धि होती है । इस रजोगुणी आत्मबल के संवर्धन से अनेकानेक प्रसुप्त पड़ी शक्तियाँ जाग्रत होती हैं जो सांसारिक जीवन के संघर्ष में अनुकूल प्रतिक्रिया उत्पन्न कर व्यक्ति को जीवन समर में विजयी बनाती हैं । गायत्री साधक कभी अभावग्रस्त व दीन हीन नहीं रह सकता, यह परमपूज्य गुरुदेव ने अपने अनुभवों व साधना की सिद्धि के माध्यम से वाड्मय के इस खण्ड में लिखा है।
गायत्री सर्वतोमुखी समर्थता की अधिष्ठात्री है । इसकी साधना कभी किसी को हानि नहीं पहुँचाती ।
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Preface
गायत्री उपासना हर व्यक्ति के लिए अनिवार्य बतायी गयी है एवं यह कहा गया है कि न केवल यह सिद्धियों को जगाती है, वरन् हमारे दैनन्दिन जीवन के कषाय-कल्मषों कों हटाने, आत्मसत्ता को स्वच्छ करने के लिए, यह नितान्त अनिवार्य है । गायत्री को कामधेनु कहा गया है अर्थात् इस महाशक्ति की जो देवता, दिव्य स्वभाव वाला मनुष्य उपासना करता है, वह माता के स्तनों के समान आध्यात्मिक दुग्ध-धारा का पान कर अनन्त आनन्द को पाता है । इसके बाद उसके जीवन में कोई अभाव नहीं रह जाता । उसके सभी कष्ट मिट जाते हैं एवं पाप-प्रारब्ध कट जाते हैं ।प्राचीन काल का इतिहास हम खोजते हैं तो पाते हैं कि सभी ऋषियों-मुनिजनों, अवतारी सत्ताओं की उपासना का मूल आधार गायत्री ही रहा है । गायत्री साधना से सतोगुणी सिद्धियों व्यक्ति को मिलती हैं एवं उसका जीवन संवेदना-समर्थता-कुशलता-संपन्नता इन चतुर्दिक शक्तियों से ओतप्रोत हो जाता है । गायत्री त्रिगुणात्मक है । इसकी उपासना से जहाँ सतोगुण बढ़ता है, वहीं कल्याणकारी उपयोगी रजोगुण की भी अभिवृद्धि होती है । इस रजोगुणी आत्मबल के संवर्धन से अनेकानेक प्रसुप्त पड़ी शक्तियाँ जाग्रत होती हैं जो सांसारिक जीवन के संघर्ष में अनुकूल प्रतिक्रिया उत्पन्न कर व्यक्ति को जीवन समर में विजयी बनाती हैं । गायत्री साधक कभी अभावग्रस्त व दीन हीन नहीं रह सकता, यह परमपूज्य गुरुदेव ने अपने अनुभवों व साधना की सिद्धि के माध्यम से वाड्मय के इस खण्ड में लिखा है।
गायत्री सर्वतोमुखी समर्थता की अधिष्ठात्री है । इसकी साधना कभी किसी को हानि नहीं पहुँचाती ।
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