Saturday, 9 April 2016

अपना दॄष्टिकोण ठीक रखे

अपना दृष्टिकोण ठीक रखें

हमारा दृष्टिकोण भी सुधरे

संसार की प्रत्येक वस्तु में भले- बुरे दोनों प्रकार के तत्त्व विद्यमान हैं, ठीक उसी तरह जैसे काल के संदर्भ में रात और दिन ।। संसार का प्रत्येक पदार्थ अपने आप में अपूर्णता लिए हुए है ।। चेतन और जड़ के सहयोग से निर्मित यह विश्व विकारयुक्त है ।। निर्विकारी तो एकमात्र परमात्मसत्ता, ब्रह्म ही है, यह निर्विवाद सत्य है ।। किंतु मनुष्य का प्रतिगामी दृष्टिकोण केवल वस्तुओं, स्वयं के और संसार के कृष्ण पक्ष को ही देखता है ।।

जिस तरह हरा चश्मा चढ़ा लेने पर चारों ओर हरा ही हरा, लाल चढ़ा लेने पर लाल ही लाल दिखाई देता है वैसे ही संसार की विभिन्नता मनुष्य के दृष्टिकोण का ही परिणाम है ।। एक पेड़ को बढ़ई इस दृष्टि से देखेगा कि इसमें काम का सामान क्या- क्या बनेगा ? एक दार्शनिक विश्वचेतना और जड़ के सम्मिलित सौंदर्य को देखकर खिल उठेगा ।। एक पशु उसे अपने भोजन की वस्तु समझेगा ।। एक साधारण व्यक्ति उसे कोई महत्त्व नहीं देगा ।।

हमारी मानसिक शक्ति ही बाह्य संसार के रूप में हमारे सामने आती है ।। दूसरों को भले रूप में देखना ही भले दृष्टिकोण, पुरोगामी मानसिक शक्ति का परिणाम है ।। दूसरों की बुराई, दोष- दर्शन, छिद्रान्वेषण अपने ही विकृत आंतरिक जीवन का दर्शन है, प्रतिगामी मानसिक शक्ति का परिणाम है ।।

मनुष्य का जैसा दृष्टिकोण होता है, वह दूसरों के प्रति जैसा सोचता है; उसी के अनुसार उसके विचार होते हैं और इनके फलस्वरूप वैसा ही वातावरण, परिस्थितियाँ प्राप्त कर लेता है ।।

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