परमपूज्य गुरुदेव को इस युग का विश्वामित्र कहा जाता है; क्योंकि उन्होंने
विलुप्त हो रही गायत्री महाविद्या का पुनर्जीवन कर उसे एक वर्ग विशेष तक
सीमित न रहने देकर विश्वव्यापी बना दिया ।। गायत्री- साधना सद्बुद्धि की
आराधना- उपासना है ।। गायत्री को वेदों की माता- वेदमाता कहा जाता है ।।
वेद शब्द का अर्थ है- "ज्ञान" ।। यह ज्ञान- कल्याण (ऋग्), पौरुष (यजु:),
क्रीड़ा (साम) एवं अर्थ (अथर्व) -इन चार उपक्रमों के माध्यम से सृष्टि के हर
जीवधारी के चेतनात्मक क्रियाकलापों का मूल आधार है ।। उस चैतन्य शक्ति की,
जिसे आद्यशक्ति कहा जाता है, यह स्कुरणा है, जो सृष्टि के आरंभ में उद्भूत
हुई ।। इस प्रकार इस सृष्टि की उत्पत्ति ब्रह्माजी के द्वारा चार वेदों के
माध्यम से हुई ।। गायत्री वही आद्यशक्ति है, इसलिए वेदमाता कही जाती है ।।
गायत्री मंत्र को समस्त वेद- शास्त्रों का निचोड़ कहा गया है ।। शास्त्रों में ऋषिगणों ने इस मंत्र की महिमा का गायन खुलकर किया है तथा श्रीमद्भगवद्गीता में तो स्पष्ट रूप से योगिराज श्रीकृष्ण के मुख से कहलवाया गया है कि गायत्री छंदों में सर्व श्रेष्ठ होने के रूप में परमात्मा की सत्ता उनमें विराजती है ।। "गायत्री छंदसामहम्" ।। गायत्री मंत्र एक छोटा- सा सारगर्भित, किंतु समग्र धर्मशास्त्र है, जिसके चौबीस अक्षरों में से प्रत्येक अक्षर में वेदोरूपी महावटवृक्ष के मूलतत्त्व ज्ञानबीज के रूप में विद्यमान हैं ।। इन्हीं के पल्लवित होने पर वैदिक वाड्मय का अपौरुषेय कहलाने वाला चारों वेदों का विस्तार ऋषियों की ज्ञान- संपदा के रूप में हमारे समक्ष आता है, जो सृष्टि की उत्पत्ति का आधार ही नहीं बना, देव संस्कृति का, विश्व संस्कृति का उद्गम भी कहलाया ।।
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