Preface
गायत्री मंत्र की व्याख्या का विस्तार चारों वेदों के रुप में हुआ इसी से गायत्री को वेदमाता कहते हैं ।। वेद जननी होते हुए भी गायत्री एक वेद मन्त्र है ।। वेद के प्रत्येक मन्त्र का एक छन्द एक ऋषि और एक देवता होता है ।। उसका स्मरण, उच्चारण करते हुए विनियोग किया जाता है ।। गायत्री महामन्त्र का गायत्री छन्द विश्वामित्र ऋषि और सविता देवता है ।। वोलचाल की भाषा में सविता को सूर्य कहते हैं ।। सविता और सावित्री का युग्म माना गया है ।। प्राथमिक उपासना में गायत्री का मातृ सत्ता के दिव्य शक्ति के रुप में नारी कलेवर का निर्धारण हुआ है ।। मानवी आकृति में उसे देवी प्रतीक प्रतिमा के रूप में प्रतिष्ठापित किया गया है ।। यह उचित भी है ।। इसमें पवित्रता सहृदयता, उत्कृष्टता, सद्भावना, सेवा- साधना जैसे मातृ- शक्ति में विशिष्ट रुप से पाये जाने वाले गुणों का साधक को अनुदान मिलता है ।। इस प्रतीक पूजा से नारी तत्व के प्रति पूज्य भाव की सहज श्रद्धा उत्पन्न होती है ।। सद्बुद्धि, ऋतम्भरा, प्रज्ञा, विवेकशीलता, दूरदर्शिता जैसी सत्प्रवृत्तियों को साहित्य में स्त्रीलिंग माना गया है ।। अस्तु इस चिन्तन के इस दिव्य प्रवाह को यदि अलंकारिक रुप से नारी प्रतीक के रुप में चित्रित किया गया है तो उसे उचित ही कहा जा सकता है ।। इस प्राथमिक प्रतिपादन के रूप में प्रस्तुत किये गये नारी विग्रह से भी गायत्री महाशक्ति के उच्चस्तरीय स्वरूप में कोई अन्तर नहीं आता ।।साकार उपासना में भी गायत्री माता का ध्यान सदा सूर्य मडल के मध्य में विराजमान महाशक्ति के रुप में किया जाता हे ।। सूर्यमण्डल मध्यस्था विशेषण के साथ ही उसे समझा और समझाया जाता है ।। साकार उपासना करने वाले पुस्तक, पुष्प, कमण्डल धारण किए हुए मातृ- शक्ति का सूर्यमण्डल के मध्य में विराजमान ध्यान करते हैं ।। http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=763
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