Saturday, 30 April 2016

Gayatri Ke Pratyaksha Chamatkar-11

Preface

गायत्री महामंत्र की साधना व्यक्ति के जीवन में क्या कुछ नहीं देती, यह सारा प्रसंग बहुविदित है । विधिपूर्वक की गई साधना निश्चित ही फलदायी होती है एवं उसके सत्परिणाम साधक को शीघ्र ही अपने आत्मिक-लौकिक दोनों ही क्षेत्रों में दिखाई देने लगते हैं । फिर भी इस छोटे से धर्मशास्त्ररूपी सूत्र में इतना कुछ रहस्य भरा पड़ा है, जिसे यदि परत दर परत खोला जा सके तो व्यक्ति अपने जीवन को धन्य बना सकता है । गायत्री भारतीय संस्कृति का प्राण है, परमात्मसत्ता द्वारा धरती पर भेजा गया वह वरदान है, जिसका यदि मनुष्य सदुपयोग कर सके तो वह अपना धरित्री पर अवतरण सार्थक बना सकता है ।
परमपूज्य गुरुदेव जानते थे कि गायत्री-साधना में प्रवृत्त रहने के बाद जनसामान्य में और अधिक जानने की और अधिक गहराई में प्रवेश करने की उत्सुकता भी बढ़ेगी । इसी को दृष्टिगत रख उनने उसका, जितना एक सामान्य गायत्री- साधक को जानना चाहिए व जीवन में उतारना चाहिए, मार्गदर्शन गायत्री महाविज्ञान के अपने तीनों खंडों में कह दिया । इसी प्रसंग में कुछ गुह्य पक्षों की चर्चा वाङ्मय के इस खंड में की गई है ।

गायत्री के चौबीस अक्षर वास्तविकता में चौबीस शक्तिबीज हैं । सांख्य दर्शन में वर्णित उन चौबीस तत्त्वों का जो पंच तत्वों के अतिरिक्त हैं, गुंफन करते हुए ऋषिगणों ने गायत्री महामंत्ररूपी सूक्ष्म आध्यात्मिक शक्ति को प्रकट कर जन-जन के समक्ष रखा । चौबीस मातृकाओं की महाशक्तियों के प्रतीक ये चौबीस अक्षर इस वैज्ञानिकता के साथ एक साथ छंदबद्ध- गुंथित कर दिए गए हैं कि इस महामंत्र के उच्चारण मात्र से अनेकानेक अंदर की प्रसुप्त शक्तियों जाग्रत होती हैं । अंदर की प्राणाग्नि में तीव्र स्तर के स्पंदन होने लगते हैं एवं यह परिवर्तन साधक के वर्चस् के संवर्द्धन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

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