Saturday, 2 July 2016

सभ्य समाज की अभिनव संरचना में जुटें

Preface

जिस समाज में लोग एक -दूसरे के दु:ख -दर्द में सम्मिलित रहते हैं , सुख- संपति को बाँटकर रखते हैं और परस्पर स्नेह, सौजन्य का परिचय देते हुए स्वयं कष्ट सहकर दूसरों को सुखी बनाने का प्रयत्न करते हैं उसे देव समाज कहते हैं। जब जहाँ जनसमूह इस प्रकार पारस्परिक संबंध बनाए रहता है तब वहाँ स्वर्गीय परिस्थितियाँ बनी रहती हैं ।। पर जब कभी लोग न्याय -अन्याय का, उचित- अनुचित का , कर्त्तव्य -अकर्त्तव्य का विचार छोड़कर उपलब्ध सुविधा या सत्ता का अधिकाधिक प्रयोग स्वार्थ में करने लगते हैं तब क्लेश ,द्वेश और असंतोष की प्रबलता बढ़ ने लगती है। शोषण और उत्पीड़न का बाहुल्य होने से वैमनस्य और संघर्ष के दृश्य दिखाई पड़ने लगते हैं।
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