Preface
ग्रामोत्कर्ष को प्रमुखता मिलेबच्चों की आवश्यकता को प्राथमिकता दी जाती है, क्योंकि वे दुर्बल, असमर्थ और विकास के लिए आतुर होते हैं, उनके लिए साधन जुटाने में बड़ों की थोड़ी उपेक्षा भी कर दी जाती है ।। यही बात रोगियों या अपंगों के संबंध में भी है, उनकी साज- सँभाल को प्रमुखता दी जाती है, भले ही इस क्रम में बड़ों का नंबर पीछे पड़ जाता हो ।। इसमें बड़ों के प्रति द्वेष या अन्याय नहीं है, वरन उस करुणा की प्रधानता है जो पिछड़ों की सेवा- सहायता करने को प्रथम कर्तव्य मानती है और जो स्वावलंबी हैं, उन्हें अपने बलबूते अपनी साज- सँभाल स्वयं कर लेने के संबंध में अपेक्षाकृत निश्चिंतता रहती है ।।
ग्राम्य जीवन के संबंध में इन दिनों यही दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए ।। वहाँ अशिक्षा का, गरीबी का, गंदगी का, मूढ़मान्यताओं का बाहुल्य है ।। देहाती क्षेत्र में ८० प्रतिशत भारतीय जनता रहती है सो भी बिखरी हुई छोटी- छोटी बसावटों में, जहाँ यातायात के, परिवहन के साधनों का भारी अभाव है ।। जिसमें वे न तो आसानी से सुविधा- संपन्न कस्बों- शहरों के साथ जुड़ पाते हैं और न सुधारक वहाँ सुविधापूर्वक पहुँच पाते हैं ।। जीवन की प्रमुख आवश्यकताएँ भी वहाँ सुविधापूर्वक उपलब्ध नहीं हैं, शिक्षा- चिकित्सा तो दूर स्वच्छ पेयजल तक का अभाव है ।। कृषि पर ही वह क्षेत्र निर्भर है, छोटी- छोटी जोतों और सिंचाई के अभाव में वह भी बारह महीनों का काम नहीं दे पाती ।।
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