Saturday, 2 July 2016

विवाह संस्कारो मे विकृतियाँ न जोडे़ं

Preface

किसी महान प्रयोजन को लक्ष्य मानकर जाने वाले धर्मसेवी, लोकसेवी, परिव्राजक स्तर के महापूरुष तो अविवाहित जीवन में भी सुविधा अनुभव करते हैं, पर सामान्यजनों को सामान्य जीवन में विवाहित रहकर काम चलाना ही सुविधाजनक पड़ता हैं ।। इसमें प्रकृति की प्रेरणायेँ भी पूरी होती हैं ।। पेट की भूख कमाने के लिये बाधित करती हैं और वंश वृद्धि की ललक कामुकता के रुप में गृहस्थी बसाने की प्रेरणा देती हैं ।। साधारणतया इन्हीं दो कार्यों की शृंखला जीवन अवधि को व्यस्तता के बीच पूरी कर देती है। जीवन संकट इन्हीं दो प्रयासों की लोक पर घिसटता रहता है और आयुष्य की अवधि पूरी कर लेता है। यही प्रचलन भी है और यही सर्वसुलभ और सुविधाजनक भी। तरुणाई के आगमन वाले दिनों में सामान्यता ऐसी प्रकृति प्रेरणा होती है की जोड़ा बनाकर रहें।नये रक्त के साथ जुड़ी हुई उमगें इसके लिये प्रेरित भी करती है,उन्हें छोड़कर सामान्यजन विवाह की इच्छा करते और उसका सरंजाम भी जुटाते है। 

इस संदर्भ में उससे अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है, जितनी कि आमतौर से बरती जाती है। लोग सुंदर शरीर वाला साथी पाने की फिराक में रहते है। चयन प्राय: इसी आधार पर हो सका तो प्रसन्नता व्यक्त की जाती है।इसके अतिरिक्त लड़के का कमाऊ और लड़की का चुलबुलापन भी पसन्दगी का कारण माना जाता है।
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