मरणोत्तर जीवन तथ्य एवं सत्य -16
भारतीय संस्कृति में मानवीय काया को एक सराय की एवं आत्मा को एक
पथिक की उपमा दी गयी है। यह पंचतत्त्वों से बनी काया तो क्षणभंगुर है, एक
दिन इसे नष्ट ही होना है किन्तु आत्मा नश्वर है। यह कभी नष्ट नहीं होती।
गीताकार ने बड़ा स्पष्ट इस सम्बन्ध में लिखते हुए जन-जन का मार्गदर्शन किया
है-
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणों न हन्यते हन्यमाने शरीरे।
अर्थात् ‘‘यह आत्मा किसी काल में भी न तो जन्मता है और न मरता ही है तथा
यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला ही है क्योकि यह अजन्मा, नित्य सनातन और
पुरातन है, शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।’’
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