जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
मनुष्य को न तो अभागा बनाया गया है और न अपूर्ण। उसमें वे सभी
क्षमताएँ बीज रूप से विद्यमान हैं, जिनके आधार पर अभीष्ट भौतिक एवं आत्मिक
सफलताएँ प्रचुर मात्रा में प्राप्त की जा सकती हैं, आवश्यकता उनके समझने और
उनके उपयोग करने की है।
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