प्रेरणाप्रद दृष्टांत-६७
कथा-कहानी के अनेक रूप हैं । हजारों पन्नों के विशालकाय उपन्यास
और दस-बीस पंक्तियों के दृष्टांत सबकी गणना उसी विभाग में होती है ।
पुराणों की कथाएँ उपाख्यान आदि की रचना भी इसी उद्देश्य से की गई है । जो
लोग वेद, उपनिषद् दर्शन, स्मृतियों में वर्णित धार्मिक उपदेशों को नहीं समझ
सकते, वे उनको कथाओं के माध्यम से रुचिपूर्वक सुन लेते हैं और कुछ लाभ भी
उठा सकते हैं ।
मनोरंजन में अक्सर धूर्तता, अंधविश्वास और अवांछनीयता तक का समर्थन रहता है
। प्रचलित कहानियों में से नैतिक चेतना की प्रेरणा देने वाली कितनी हैं,
यदि इसकी तलाश की जाए तो उनमें से खरी नहीं, खोटी ही सिद्ध होंगी । उन्हें
सुनने- सुनाने से मनोरंजन तो हो जाता है, पर परोक्ष रूप से मस्तिष्क को
अनैतिक एवं अवांछनीय तृष्णा ही प्राप्त होती है ।
इस दृष्टिकोण को सामने रखकर परमपूज्य गुरुदेव ने ऐसे छोटे-छोटे दृष्टांतों,
लघु कथाओं का निर्माण किया है, जिनको लोग दस-पाँच मिनट में पढ़कर हृदयंगम
कर सकें और उनमें से हर कोई उपयोगी शिक्षा ग्रहण कर सकें । ऐसी रचनाएँ
भावनात्मक एवं घटनाप्रधान होने के कारण बहुत ही उपयोगी सिद्ध होती हैं,
क्योंकि जब पढ़ने वाला देखता है कि इस स्वार्थी और शोषण प्रवृत्ति की
प्रधानता वाले जमाने में भी कुछ लोग परोपकार, कर्त्तव्यपरायणता एवं
सिद्धातनिष्ठा के लिए इस प्रकार तन, मन, धन निछावर करने को सर्वस्व उत्सर्ग
करने को उद्यत हो जाते हैं, तो उनके मन पर निश्चित रूप से गहरा प्रभाव
पड़ता है और अगर उसी दिशा में बढ़ते रहा जाए तो धीरे- धीरे स्थायी भी हो सकता
है ।
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