Friday, 24 March 2017

मनुष्य की दुर्बुद्धि और भावी विनाश

हम बढ़ रहे हैं, मगर किस दिशा में ?

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=552प्रकृति की व्यवस्थाएँ इतनी सर्वांण पूर्ण हैं कि उसे ही परमात्मा के रूप में मान लिया जाए तो कुछ अनुचित नहीं होगा ।। शिशु जन्म से पूर्व ही माँ के स्तनों में ठीक उस नन्हें बालक की प्रकृति के अनुरूप दूध की व्यवस्था, हर प्राणी के अनुरूप खाद्य व्यवस्था बना कर जगत में सुव्यवस्था और संतुलन बनाए रखने वाली उसकी कठोर नियम व्यवस्था भी सुविदित है ।। इस व्यवस्था को जो कोई तोड़ता है, उसे दंड का भागी बनना पड़ता है ।।

इन दिनों मनुष्य ने अपनी बुद्धि का उपयोग कर अनेकानेक साधन सुविधाएँ विकसित और अर्जित कर ली हैं ।। वह निरंतर प्रगति करता जा रहा है, उत्पादन पर ध्यान केंद्रित किया है ।। मानवी रुचि में अधिकाधिक उपयोग की ललक उत्पन्न की जा रही है ताकि अनावश्यक किंतु आकर्षक वस्तुओं की खपत बड़े और उससे निहित स्वार्थों को अधिकाधिक लाभ कमाने का अवसर मिलता चला जाए ।। इसी एकांगी घुड़दौड़ ने यह भुला दिया है कि इस तथाकथित प्रगति और तथाकथित सभ्यता का सृष्टि संतुलन पर क्या असर पड़ेगा ।। इकलॉजिकल बेलेंस गँवा कर मनुष्य सुविधा और लाभ प्राप्त करने के स्थान पर ऐसी सर्प विभीषिका को गले में लपेट लेगा जो इसके लिए विनाश का संदेश ही सिद्ध होगी ।। 

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