Sunday, 26 March 2017

मानव जीवन की गरिमा

http://www.awgpstore.com/gallery/product/init?id=1239मनुष्य जीवन की श्रेष्ठता- मनुष्य जीवन इस सृष्टि की सबसे श्रेष्ठ रचना है । लगता है भगवान ने अपनी सारी कारीगरी को समेटकर इसे बनाया है । जिन गुणों और विशेषताओं के साथ इसे भेजा गया है, वे अन्य किसी प्राणी को प्राप्त नहीं हैं । इस कथन में भगवान पर पक्षपाती होने का आरोप लग सकता है, किंतु बात ऐसी है नहीं । भगवान तो सबका पालनहार पिता है, उसे अपनी सभी संतानें एक समान प्रिय हैं और वह न्यायप्रिय है । सभी प्राणियों को उसने जीने लायक आवश्यक सुविधाओं को देकर भेजा है । स्वयं निराकार होने के कारण उसने मनुष्य को अपना मुख्य प्रतिनिधि बनाकर सृष्टि की देख-रेख के लिए भेजा है । उसे उसकी आवश्यकता से अधिक सुविधाएँ और शक्तियाँ इसलिए दी गई हैं, ताकि वह उसके विश्व-उद्यान को सुंदर, सभ्य और खुशहाल बनाने में अपनी जिम्मेदारी को ठीक ढंग से निभा सके ।

शारीरिक दृष्टि से मनुष्य की स्थिति अन्य प्राणियों से बेहतर नहीं है । पक्षियों की तरह हवा में उड़ना, मछलियों की भाँति जल में तैरना उसे नहीं आता । बंदर के समान पेड़ पर उछल-कूद वह नहीं कर सकता, शेर की तरह अपना पराक्रम-बल भी नहीं दिखा सकता । हाथी के सामने वह बौना सा दिखता है । इंद्रिय क्षमताओं में भी अन्य प्राणी उससे श्रेष्ठ सिद्ध होते हैं । सूँघने की शक्ति में कुत्ता, सुनने में उल्लू और देखने में बाज मनुष्य से बहुत कुशल ही सिद्ध होते हैं । कुछ जीवधारी तो भूकंप, बारिश, तूफान आदि का पहले से ही अनुमान भी लगा लेते हैं और समय रहते अपना बचाव कर लेते हैं, किंतु मनुष्य अपनी बुद्धि और पुरुषार्थ की क्षमता में सभी प्राणियों पर भारी पड़ता है । अपने से अधिक शक्ति शाली, खतरनाक और भारी भरकम शेर, चीता व हाथी जैसे वनप्राणियों को वह अपने बुद्धि कौशल और मानसिक बल से हरा देता है । 

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